SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 466
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ ढाळ पहेली ॥ (चाल-तुम चिदधन चंद आनंद लाल तोरे दर्शन की बलिहारी) तुम दर्शनचंद आनंद कंद ॥ हरे मिथ्यातप दुःख कारी ॥तुम ॥१॥ मल उपशम क्षय क्षयोपशम से ।। सम्यग् दर्शन धारी ॥तुम ॥२॥ छासठ सागर अधिक स्थिति धर । मुहुत्त अंतर लघु धारी | तुम ॥३॥ क्षयोपशम समकित भवि जानो ॥ जिन वचनो अनुसारी ॥ तुम ॥४॥ सर्व जीवे सर्व कालथी मानो ॥ सम्यग् दर्शन जारी ॥ तुम ॥५॥ करण अपूरव मुद्गर द्वारा || मिथ्याग्रंथी विदारी ॥ तुम ॥ ६॥ ___ अनिवृत्ति करणे करीने ॥ दर्शन शुद्धि प्यारी ॥तुम ॥७॥ शम संवेग निवेदी चेतन ॥ ए दर्शन गुण भारी । तुम ॥८॥ अनुकंपा कर आस्तिक भारी ॥ समकितसे नर नारी ॥तुम ॥९॥ जाय नहीं कभी नरक तिचे ॥ धर नर सुर अवतारी ॥ तुम ॥ १०॥ आत्म कमलमें केवल लक्ष्मी ॥ लब्धि वरे शिवनारी ॥ तुम ॥ ११॥ ॥दोहा॥ जिनवर भाषित सद्हे, शुद्ध देव गुरु धर्म ॥ माने अन्य आणे नहीं, ए छे समकित मर्म ॥१॥ ॥ ढाळ बीजी ॥ (राग सारंग-शंखेश्वर परमेश्वर पार्श्व-ए चाल) दुःखखानी दुनिया भटकी रही भवरानमां ॥ अंचली। जन्म मरणो अकारे, अनंती वार धारे ॥ हजु वी अनंत धरशो, भळी मिथ्या मानमां ॥ दुःख ॥१॥ दुःखहर सम्यग् दर्शन, जरा पण थाय स्पर्शन ॥ अप अर्ध पुदगल जाणो, भव भ्रमण मानमां ॥दुःख ॥२॥ दरिसण भट्ठ भट्ठा, जेथी निव्वाण नट्ठा ॥ सिज्झे चरण रहिआ प्यारो, नहीं दर्श हानमां ॥दुःख ॥३॥ आगम वादे रमतो, नहीं प्राणी भवमां ममतो ॥ स्वछंदी थई जे चाले, पडे दुःख खानमां ॥दुःख ॥४॥ धन्य जे समकित फरसे, जडसुख नहीं मन तरसे, आ जग जंजाळ जाणी, रहे आत्म ज्ञान मां ॥दुःख ॥५॥ निज गुण रंगमां रमतो, परगुण नहीं तस गमतो ॥ 486 -
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy