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________________ पाप खाडमां पडे नरक पहोंचाय छे रे ॥अरे ॥४॥ तन धन जोवन स्थिर नहीं जगमां, सगां भरे स्वास्थ रग रगमां ।। ए अनुभव अनुभवथी धर्म पमाय छे रे ॥अरे ॥५॥ वाचक पासे जे नर आवे, तेने ए सघलुं समजावे ॥ खरे ए गुण थी वाचक पद पूजाय छे रे ॥अरे ॥६॥ वाचक पदनुं ध्यान जे धरशे, जन्ममरणने ते नर हरशे । आत्मकमलमां शिवलक्ष्मी वरतावशे रे ॥अरे ॥७॥ काव्यम् : सर्वोत्तमध्येयपद प्रधानं, सुरासुरेन्द्रैः परिपूजितं यत् ॥ सेवस्व तत्ध्यानतां हि गोचरं, गुणस्वरुपं शुभ सिद्धचक्रम् ॥१॥ उपजाति वृत्तम् ॥ ॥ मंत्रः ॥ ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलादिकं यजामहे स्वाहा पंचम मुनिपद पूजा ॥ दोहा ॥ क्षमा सरलता नम्रता, मुक्ति तप सुखदाय ॥ इत्यादि गुण शोभते, मुनि सेव्ये सुख थाय ॥१॥ ॥ ढाळ पहेली ॥ (नहीं छेडो गाली दूंगी रे, भरने दे मुजनीर-यह चाल) नमो मुनि गुणगण के धारी, ब्रह्मचारी शूरवीर ॥अंचली। गुण सत्य अकिंचन पाया, शुचि संयम दिल में ठाया ॥ युं यतिधर्म सुहाया रे, ब्रह्मचारी शूरवीर ॥नमो ॥१॥ सत दश विध संयम पाले, सुस्थित मंदिर में म्हाले । बिन वृत्ति वासो टाले रे, ब्रह्मचारी शूरवीर ॥नमो ॥२॥ जडे चार कषाय कटाया, मूलसे मिथ्यात्त्व मिटाया । अविरति पाप हटाया रे, ब्रह्मचारी शूरवीर ॥नमो ॥३॥ करी पांच इंद्रियों काबू, मलशोधक जग जेम साबू ॥ तरे भवजल जेम अलाबू रे, ब्रह्मचारी शूरवीर ॥नमो ॥४॥ है अष्टादश हजारी, गुरु शीलांग रथना धारी ॥ करे जल्दी भवजल पारी रे, ब्रह्मा चारी शूरवीर ॥नमो ॥५॥ -483
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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