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________________ जैन रत्न व्याख्यान वाचस्पति प.पू. आ.दे. श्री विजयलब्धिसूरीश्वरजी कृत नवपद पूजा आदि अनंत जिनवरनमी नमो भारती जगमाय विजयनन्दसूरि तथा विजयकमलसूरी राय ॥१॥ निजसमीहित साधवा करवापर उपकार सिध्धचक्र स्तवनाकलं होवा भवजलपार ॥२॥ प्रथम पदे अरिहंत जी, बीजे सिद्ध भगवान आचारज बीजे पदे, चोथे वाचक मान ॥३॥ पांचमे पदे मुनिवर गुणी, छटे दर्शन जाण सातमे नाण पिछाणीए, मोहतिमिरहर भाण ॥४॥ आठमे चारित्र पद भलु, चरण करण गुणधाम तप पद् नव में सुरतरु, लब्धि सिद्धि वर ठाम ॥५॥ ___ए नवपद सम जगतमां, कोई नहीं आधार भविक कर्मतरु कापवा, ए जग जबर कुठार ॥६॥ त्रण तत्त्व छे जगतमां, देव गुर ने धर्म सिद्धचक्रमां ते त्रणे, रही आपे शिव शर्म ॥७॥ __ प्रथम बे देव तत्त्वमा, त्रण तत्त्व गुरु जाण चार तत्त्वमां धर्म छे, आराधो सुख खाण ॥८॥ ए नवपद आराधतां, थया श्रीपाल निरोग एम भवि जे सेवशे, तस घर मंगल योग ॥९॥ प्रथम अरिहंत पद पूजा ॥दोहा॥ __ श्री अरिहंत पद् सुखकरु, समेर दुःख जाय ॥ प्रगटे निर्मल भावना, ध्याय ध्याय मन ! ध्याय ॥१॥ ॥ ढाळ पहेली ॥ (नाय कैसे गज को बंध छुडायो-ए देशी) प्रथम श्री अरिहंत पद् चित्त ध्यावो ॥ एथी जन्मो जनम सुख पावो | ए आंकणी चार अतिशय मूलथी जाणो, ओगणीस देव प्रमाणो ॥ -476
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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