SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काल अनंतो भूल्या रुल्या, गति निगोद मोजारी ॥ श्वासमांहि भव सत्तर कीधा, दीठी न सुखनी वारी रे ॥परमेष्ठि पद ॥४॥ ___ पुण्य अनंते नरभव लाव्यो, साधो आतम काज ॥ हरदम घटमा सिमरण राखो, महामंत्र अधिराज रे ॥ परमेष्ठि पदनुं ॥५॥ धन्य जन्म हुं मारो मानु, परमेष्ठि मुज मलियो । आज कल्पतरु आंगणे फलियो, तास गुण संकलियो रे ॥ परमेष्ठि पदनुं ॥६॥ ___ तपगच्छ सिंह सूरीश्वर केरा, सत्यविजय पंन्यास ॥ क्रियोद्धार करी कर्यो जगतमा, त्याग धरम विकासरे ॥ परमेष्टि पदनुं ।।७।। तास शिष्य कर्पूर क्षमा तस, जिन उत्तम विजयान्त ॥ पद्यरुप कीर्ति कस्तुर मणि, बुद्धि विजय गुरु सन्त रे ॥ परमेष्ठि पदनुं ॥८॥ विजयानंदसूरिनो जगमा, विजय वावटो फरक्यो । जस यश हिंदुस्तान ओलंधी, चिकागो तक सरक्यो रे ॥ परमेष्ठि पदनुं ॥९॥ तास पट्टधर विजयकमलवर, सूरि ख्यात जग बंका । मिथ्या मोडी कामने तोडी, खूब बजाया डंका रे ॥ परमेष्ठि पदनुं ॥१०॥ तास पट्टधर दानसूरिवर, लब्धिसूरि दो थाय ॥ सुरत शहेरमां रही चोमासा, लब्धिसूरि गुण गाय रे ।। परमेष्ठि पदनुं ॥११॥ गोडीपार्श्व जिनेश्वर केरा, सुंदर चैत्य कहावे ॥ वडे चौटे विजयानंदसूरि, मूर्ति ज्यां सोहावे रे ॥ परमेष्ठि पदनुं ॥१२॥ विजयकमलसूरीश्वर आया, तेथी महोच्छव ठाया ॥ पूजा प्रथम भणावी भावे, आ अति आनंद पाया रे ॥ परमेष्ठि पदनुं ॥१३॥ संवत भूवसु निधि भू वर्षे, (१९८१) प्रीते रचना कीधी ॥ भाद्र बहुल पष्ठी भोमवारे, संघ हाथमां दीधी रे ॥ परमेष्ठि पदनुं ॥१४॥ इति श्री जैनरत्नव्याख्यानवाचस्पति जैनाचार्य श्रीमद् विजयलब्धिसूरीश्वरजी कृत 14751
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy