SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 450
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अरिहंत पण ए पद पूजे, जाणो तो सही ॥ पद महत्व- कारण ए दिल, आणो तो सही ॥ अनंत ॥३॥ __ वाणी अगोचर सिद्धपद सुखडां, माणो तो सही निरंतर सिद्धपदनी भक्ति, दीलडामां वही ॥अनंत ॥४॥ आत्म कमलमां लब्धि विकसित, थाए तो सही ॥ लो आनंद अनुभव रस प्यारो, शिवपुर मां रही ॥ अनंत ॥५॥ दोहा’ सर्व जगतना सुखनो, करीये वर्ग अनंत ॥ तो पण सिद्धसुख तुलना, नहीं ते वर्ग कलंत ॥१॥ मेळववा ते सुखने, करो भक्ति धरी खंत जन्ममरण दूरे करी, आणो भवनो अंत ॥२॥ ॥ ढाल-बीजी ॥ (राग-भैरव-हो न दिलाराम तो क्या दिल को आराम-ए चाल.) सिद्धपद सार, प्यारे दिलसे लो धार ॥ दिल से लो धार, करे भव से ए पार ॥ सिद्धपद सार, प्यारे दिलसे लो धार ॥ ध्यावो जो ध्यान धरी दुःखडां निवारे ॥ दुःख आवे न क्यारे, लगार ॥सिद्धपद॥ ॥अंचली। ॥ साखी ॥ सिद्धनाथ पद समरतां, टले कोटि भव पाप ॥ भाव भेद प्रकाशीने, लहे सिद्धपद आप ॥ सुख पावे ओ प्यारो, अपारे अपार ॥सिद्धपद ॥१॥ ॥ साखी ॥ सिद्ध सम नहीं जगतमां, सिद्ध खरो आधार ॥ सिद्धपद सेवन थकी, तरशो तुम निरधार ॥ टली जशे बधाए आकार विकार ॥सिद्धपद ॥२॥ आत्मकमलसिद्ध सूर्यथी, जो भवि विकसित थाय ॥ मीचायुं नवि मीचशे, रवि गुण लब्धि सुहाय ॥ थशे सर्व गुणोनो आधारे आधार |सिद्धपद ॥३॥ (469)
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy