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सुदर्शन-चरित। अविनाशी लक्ष्मीसे युक्त और देवों द्वारा पूज्य हैं तथा जगत्के स्वामी हैं।
सिद्ध भगवान्को मैं नमस्कार करता हूँ, जो सम्यग्दर्शन, ज्ञान, अगुरुलघु, अवगाहना आदि आठ गुणोंसे युक्त और आठ कर्मों तथा शरीरसे रहित हैं, अन्तरहित और लोक-शिखरके ऊपर विराजमान हैं।
श्रीसुदर्शन मुनिराजको मैं नमस्कार करता हूँ, जो कर्माको नाशकर सिद्ध हो चुके हैं, जिनके अचल ब्रह्मचर्यको नष्ट करनेके लिए अनेक उपद्रव किये गये तो भी जिन्हें किसी प्रकारका क्षोभ या घबराहट न हुई-मेरुकी तरह जो निश्चल बने रहे।
उन आचार्योको मैं नमस्कार करता हूँ, जो स्वयं मोक्ष-सुखकी प्राप्तिके लिए पंचाचार पालते हैं और अपने शिष्योंको उनके पालनेका उपदेश करते हैं तथा सारा संसार जिन्हें सिर नवाता है।
उन उपाध्यायोंको भक्तिपूर्वक नमस्कार है, जो ग्यारह अंग और चौदहपूर्वका स्वयं अभ्यास करते हैं और अपने शिष्योंको कराते हैं। ये उपाध्याय महाराज मुझे आत्मलाभ करावें ।
उन साधुओंको बारम्बार नमस्कार है, जो त्रिकाल योगके धारण करनेवाले और मोक्ष-लक्ष्मीके साधक-मोक्ष प्राप्त करनेके उपायमें लगे हुए हैं तथा घोरतर तप करनेवाले हैं।
जिसकी कृपासे मेरी बुद्धि ग्रन्थोंके रचनेमें समर्थ हुई, वह जिनवाणी मेरे इस प्रारंभ किये कार्यमें सिद्धिकी देनेवाली हो ।