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________________ सुदर्शन-चरित। रहा। मातृ-सुख रहित होकर, भूख-प्यासका उसने बहुत कष्ट सहा / आखिर अशुभ कर्मने उसे भी माता-पिताका साथी बना दिया / इसी चम्पानगरीमें एक महा धनी वृषभदास सेठ रहता था / उसकी स्त्रीका नाम जिनमती था। उनके यहाँ एक ग्वाल था / वह बड़ा खूबसूरत था-भव्य था / बड़ा सीधा-साधा और बुद्धिमान था। वह ग्वाल उसी लोधका जीव था। एक दिन सूर्यके अस्त होनेका समय था / ठंड खूब पड़ रही थी। उस समय वह ग्वाल अपने घरपर आ रहा था। राम्तेमें उसे एक चौराहा पड़ा / वहाँ उसने एक मुनिरानको ध्यान करते देखे / वे अनेक ऋद्धियोंसे युक्त थे / उस समय एकत्वभावनाका विचार कर रहे थे / आत्म-ध्यानसे उत्पन्न होनेवाले परम सुग्वमें वे लीन थे। महा धीर-वीर थे / एकाविहारी थे। ध्येय उनका था केवल मुक्ति-प्रियाकी प्राप्ति / वे रागद्वेषसे रहित थे / धर्मध्यान और शुक्लल्यानके द्वारा अपने हृदयको उन्होंने दोनों ध्यानमय बना लिया था। दोनों प्रकारके परिग्रहसे वे रहित थे / द्रव्यकर्म और भावकम इन दोनों कर्मोके नाश करनेके लिए उनका पूर्ण प्रयत्न था / वे रत्नत्रयसे भूषित थे / माया, मिथ्या और निदान इन तीन प्रकारके शल्यसे रहित थे। वे तीनों वार सामायिक करते थे, त्रिकालयोग धारण करते थे और सबके उपकारी-- हितैषी थे। क्रोध, मान, माया, लोभ रूपी चारों शत्रुओंके नाश करनेवाले और चारों आराधनाओंकी आराधना करनेवाले थे
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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