SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुदर्शन संकटमें। [ ३९ आती जान पड़ी। उसने तब अपनी रक्षाके लिए एक कुटिलताकीचाल चली। किसीकी बुराई, ईर्षा, द्वेष, मत्सरता आदिसे सम्बन्ध न रखनेवाले धीर सुदर्शनको उसने कायोत्सर्गसे खड़ा कर और अपने शरीरमें नखों, दाँतों आदिके बहुतसे घाव करके वह एकदम बड़े जोरसे किल्कारी मारकर रोने लगी और लोगोंको पुकारने लगी, दौड़ो ! दौड़ो !! यह पापी मुझ शीलवतीका सतीत्व नष्ट करना चाहता है। इस दुराचारीने कामसे अन्धे होकर मेरा सारा शरीर नोंच डाला। अभयमतीका आक्रन्दन सुनकर बहुतसे नौकर-चाकर दौड़ आये। उनमेंसे कुछने तो सुदर्शनको गिरफ्तार कर बाँध लिया और कुछने पहुँच कर राजासे फिरियाद की-महाराज, कामान्ध हुए सुदर्शनने आपके रनवासमें घुसकर रानीजीकी बड़ी दुर्दशा कीउनके सारे शरीरको उस पापीने नखोंसे नोंचकर लहु-लुहान कर दिया। राजाने जाकर स्वयं भी इस घटनाको देखा। देखते ही उनके क्रोधका कुछ ठिकाना न रहा। उसकी कुछ विशेष तपास न कर अविचारसे उन्होंने नौकरोको आज्ञा दी कि-जाओ इस कामान्ध हुए अन्यायी सेठको मृत्युस्थानपर लेनाकर मारडालो! राजाकी आज्ञा पाते ही वे लोग सुदर्शनको केश पकड़ कर घींसते हुए मारनेकी जगह ले गये। सुदर्शनके मारे जानेकी खबर जैसी ही चारों ओर फैली कि सारे शहरमें हा-हाकार मच गया। क्या स्वजन और क्या परजन सभी बड़े दुखी हुए। सब उसके लिए रो-रोकर कहने लगे कि हे सुभग, आज तुझसे सत्पुरुषके हाथोंसे ऐसा कौनसा अकारज हो गया जिससे तुझे मौतके मुँहमें जाना पड़ा ! हाय ! तुझसे धर्मात्माको
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy