________________
|| ओं नमः सिद्धेभ्यः ॥
प्रभंजन- चरित |
( संस्कृतका हिन्दी रूपान्तर । )
पहिला सर्ग |
घातिकर्म-रूप- बादलोंके उड़ानेको प्रभंजन (वायु) के समान जो श्री वर्द्धमान उनको नमस्कार कर मैं अपनी बुद्धिके अनुसार प्रभंजन गुरुके चरितको कहता हूँ ।
जम्बूद्वीप के मण्डनरूप भरतक्षेत्रमें पूर्वदेश नामक देश है । इस देश में तिलक समान पवित्र पुण्यपुर नगर है । पुण्यपुरके राजा पूर्णभद्र थे । इनका यश पूरे चाँदके समान निर्मल और दिगन्तव्यापी था । पूर्णभद्रकी रानीका नाम भामा और पुत्रका नाम भानु था । एक समय प्रमद नामक वनपाल राजाके पास पहुँचा और सब ऋतुओंके फलफूल उनकी भेंट देकर बोला- “ देवोंके देव ! उद्यानमें आज बहुतसे मुनिजनोंके साथ २ श्रीवर्द्धमान मुनीश्वर पधारे हैं । देवोंके समुदाय आ आकर उनकी वन्दना और स्तुति करते हैं।” वनपालके मुखसे यह शुभ समाचार सुनकर राजाने उसे बहुत धन दिया और आप स्वयं एक मनोहर हाथीपर सवार हो नगरसे बाहर निकले । जब उद्यान पास आ गया तब ध्यानारूढ़ मुनियोंको देखते भालते वनके
हाथीसे
उतर इधर उधर भीतरको गये । वहाँ