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प्रभजन-चरित । प्राप्त हुए। समिद्ध-दीप्त-शुद्ध शरीरधारी, दिव्य अलंकार, दिव्य लेपन, दिव्य आहार, दिव्य गति, दिव्य माल्यगंध और दिव्य वस्त्रोंके धारी तथा जिनेन्द्रकी वन्दना स्तुतिके कर्ता, महान् गुणोंके भंडार,
और संसारसे भीरु होकर भी नाना प्रकारके मनोहर आत्मीय भोगोंके भोक्ता वे सब मुनीश्वर हमारी आत्मलक्ष्मीकी पुष्टि करें और हमें हमेशा सुख देवें ।
इस प्रकार श्रीप्रभंजन गुरुके चरितमें यशोधर चरितकी पीठिकाकी रचनामें पाँचवा सर्ग पूरा हुआ।
॥ समाप्तोऽयं ग्रन्थः ॥