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________________ (८६) गिरनार पर्वत के एक ध्यान योग्य वन में पहुंचे। वहां पर उन्होंने सम्यग्दर्शन की सामर्थ्य से दर्शन मोहनीय कर्म का क्षय किया । फिर उसी रमणीक वन में एक आम के वृक्षके नीचे निर्मल शिला पर पर्यकासन योग से विराजमान होकर और चित्त का निरोध करके तथा दृष्टिको नासिका के अग्रभाग में लगा करके आत्मस्वरूप में तल्लीन होगए । ___फिर क्रम २ से जैसे २ कर्म शुद्धि होती गई वैसे २ प्रमत्तादि गुणस्थानों से निकलकर ऊपर चढ़ने लगे । पाठवें अपूर्वकरण गुणस्थान को उल्लंघन करके नौवें अनिवृत करण में स्थिर हुए । यहां अनेक प्रकृतियों का घात किया, सूक्ष्म साम्पाय गुणस्थान में संज्वलन लोभ प्रकृति का नाश किया और बारहवें क्षीण कषाय गुणस्थान में सम्पूर्ण घातिया कर्मों का नाश किया। इसके अनंतर तेरहवें गुणस्थान में प्रवेश करके, अविनाशी लोकाकाश प्रकाशक, केवल ज्ञानको प्राप्त किया। केवलज्ञान के प्राप्त होते ही छत्र, चंवर, सिंहासन ये ३ दिव्य वस्तुएं देवकृत प्राप्त हुई और इंद्रकी आज्ञा पाकर कुबेर ने बड़ी भक्ति से ज्ञान कल्याणक के लिए एक गंधकुटी की रचना की। प्रद्युम्नकुमार को केवलज्ञान प्राप्त हुआ जानकर चारों प्रकार के देव तथा अनेक विद्याधर और भूमिगोचरी राजा भक्ति और प्रेम
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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