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________________ (६२) करा दिया । घोड़ों ने तमाम वृक्षों को जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया, पुष्पों और फलों को तोड़कर गिरादिया और तालाब को सुखा दिया । इसी तरह सत्यभामा के एक दूसरे बगीचे को भीमायामई बंदरों द्वारा जंगल करा दिया। आगे चलकर भानुकुमार के विवाह के मंगल कलशों से भरा हुआ स्त्री समूह सहित एक उत्तम रथ जारहा था। उसे देखते ही कुमार ने अपनी विद्या द्वारा एक विचित्र रथ बनाया जिस में गधा और ऊंट जुते हुए थे और उसे सत्यभामा के रथ की ओर बढ़ा कर उसके रथ को चूर्ण कर डाला, और कलशों को पटक दिया, फिर रथ को गली २ में फिराने लगा, जिसे देखकर लोगों को बड़ा आश्चर्य होता था और वे उसके विषय में भांति २ की कल्पनाएँ करते थे। वे मेंढ़े को देखकर बड़े प्रसन्न हुए और उसके विषय में मेंढ़े वाले से पूछने लगे। मेंढ़े वाले ने कहा, महाराज यह बड़ा बलवान मेंढ़ा है, बड़ा विषम और दुर्जय है । बसुदेव जी बोले, यदि यह बलवान् है तो इसे मेरी जंघा पर टक्कर लगाने दो । मेंढ़े वाला हिचकिचाया परंतु बसुदेव जी के आग्रह से उसने मेढ़े को छोड़ दिया। मेंढ़े ने जाकर ऐसी ज़ोर से टक्कर लगाई कि बसुदेव जी गिर पड़े और बेहोश हो गए । यादव गण शीतोपचार करने लगे, इतने में प्रद्युम्न कुमार आंख बचाकर वहां से चलता हुआ।
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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