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________________ (५४) कर उड़ने लगे और शरीर कांपने लगा । बड़े आकुलित होकर कहने लगे, बेटा, तू मुझे इस विमान में बिठाकर क्यों व्याकुल करता है। तेरे माता पिता तथा सर्व कुटुम्बी गण मुझ पर बड़ी भक्ति रखते हैं, फिर तू मुझे क्यों दिक़ करता है। कुमार ने उत्तर दिया, महाराज ! जान पड़ता है आप का चरित्र भी कुटिलता युक्त होगया है । बड़ी मुश्किल की बात है, धीरे चलाऊं तब आपको नहीं रुचता, शीघ्र चलाऊं तब आपको नहीं अच्छा लगता । लो अब चलाताही नहीं, आप जाइए, मैं जाता ही नहीं। उसने वहीं आकाश में विमान को खड़ा कर दिया। नारद जी क्रोध को शांत करके बोले, मैं तुझे लेने आया हूं, इसीलिए तू इतना विलम्भ करता है, तुझे मालूम नहीं कि यदि माता का पराभव हो गया और तूपीछे से पहुंचा तो फिर क्या लाभ ? और एक बात और भी है, तेरे माता पिता ने तेरे लिए बहुतसी सुंदर कन्याओं की याचना कर रक्खी है, यदि तू न पहुंचा तो उन सबको तेरा छोटा भाई परणालेगा। ___यह सुनते ही कुमारने हर्षित होकर विमान को चलाया। रास्ते में अनेक सुंदर वन, उपवन, नदी, सरोवर, पशु, पक्षी आते थे । नारदजी कुमार को वे सब दिखलाते जाते थे। इस प्रकार आश्चर्य युक्त पृथिवी की सैर करते हुए वे दोनों कितनी ही दूर निकल गए।
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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