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________________ * उन्नीसवां परिच्छेद * SERIAIT ता को प्रणाम करके ५०० पुत्र चलदिये और प्र ॐ द्युम्न कुमार को जल कीड़ा के बहाने से नगर के 5. बाहर वापिका पर लेगए। वहां वे अपने वस्त्र उतार कर तथा दूसरे पहिन कर वापिका में कूदने के लिये वृक्षों पर चढ़ गए । उसी समय पुण्य के उदय से विद्या ने आकर कुपार के कान में लगकर उसको जल में कूदने से मना कर दिया। विद्या के वचन सुनते ही कुमार ने विद्या के बल से अपने जैसा एक दूसरा रूप बनाया और आप अदृश होकर वापिका के तट पर बैठकर कौतुक देखने लगा । इतने में वृक्ष के ऊपर चढ़े हुए प्रद्युम्न के विद्या मई रूप ने पानी में गोता लगाया। यह देख सबके सब विद्याधर पुत्र, चलो शीघ्र कूदो, पापी को अभी मार डालो, ऐसे शब्द कहते हुए एकदम कूदपड़े। यह लीला देखकर निष्कपट कुमार चकित रहगया । किस कारण से ये मेरे शत्रु होगए, मैंने इनका क्या बिगाड़ा, मुझे ये क्यों मारने की ताक में लग रहे हैं ? जान पड़ता ह, पापिनी कनकमाला माता ने पिता के आगे विरूपक बनाकर झूठी सच्ची बातें कही होंगी, उसी की बातों पर विश्वास करके पिता ने इनको मुझे मारने की आज्ञा देदी होगी, अस्तु
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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