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________________ ( ४१ ) और 'ज़रा हट ज़रा हट' कहती जाती थीं, और इस अतुल्य जोड़े को देखकर आपस में नाना प्रकार के विनोद करती थीं । इस प्रकार नगर की स्त्रियों को दर्शन देता हुआ प्रद्युम्न कुमार राजमहल में पहुँचा । बड़ी नम्रता से पिता को प्रणाम किया । पिता ने पुत्र का आलिंगन किया और मस्तक को चूमा । फिर कुशलक्षेम पूछी। थोड़ी देर बैठकर कुमार पिता की आज्ञा लेकर माता के मंदिर में गया और बड़े विनीत भावों से जननी का आलिंगन करके चरण कमलों को विनयपूर्वक नमस्कार करके बैठ गया । कनकमाला ने अपने श्रेष्ठ पुत्र को आशीर्वाद दिया । परंतु, हाय ! पाप की बुरी गति है । पूर्व भव में जो कनकमाला का जीव राजा मधु की रानी चंदप्रभा था, उसी पूर्व भव के प्रेम का संचरण उसके मन में हो आया वह मूर्खा काम पीड़ा से बीधी गई । माता पुत्र का सम्बंध भूल गई, खोटी बुद्धि होगई । कुमार के सर्वांग सुंदर शरीर और आदर्श रूप को देखकर काम की प्रेरी हुई कनकमाला मर्म का भेदन करने वाले कामदेव के वाण से पीड़ित होकर दीनमुख होगई । विरह की अग्नि से उसका सारा शरीर दहकने लगा । विरह से आद्रित होकर नेत्रों से आँसू बहाने लगी और विचारने लगी, क्या करूं कहाँ जाऊँ, किससे पूछूं । इस सुंदर कुमार को सेवन किये बिना मेरा रूप, मेरी कांति और मेरे
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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