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________________ (३३) हूं। राजा हिरण्यनाभि ने दीक्षा लेते समय मुझे यह कहकर यहां भेजदिया था कि जो कोई गर्वशाली बलवान् तथा सर्वमान्य पुरुष मणि गोपुर में आवे और तुझ से युद्ध करने के लिये कमर कसके तैयार हो जावे, वही मेरी विद्याओं का नायक होगा। उनकी आज्ञानुसार मंत्र मण्डल की रक्षा करता हुवा मैं आपकी तलाश में यहां रहता हूं । अब आप इन विद्याओं को ग्रहण कीजिये और यह निधि तथा कोष भी अंगीकार कीजिए। पश्चात् अमूल्य मुकुट और दिव्य आभरण देकर कुमार की पूजा करके वे विद्याएँ बोली, महाराज ! आप ही हमारे स्वामी हो, हमारे लायकचाकरी हो सो कहो । कुमार ने उत्तर दिया, जब हम याद करें तब हाज़िर होना। उधर बज्रदंष्ट्र ने यह विचार कर कि प्रद्युम्न को गए बड़ी देर होगई है, वह अवश्य मारा गया है, खुशी २ भाइयों से घर चलने को कहा । किंतु ज्योंही वे चलने लगे, उन्हों ने प्रद्युम्न को गुफा में से आभूषण पहिने आते देखा। उसे देखते ही वे सब राजकुमार गर्व गलित होगए, परंतु मन के भावों को छुपा करके उसे काल गुफा की ओर लेचले। बड़े भाई की आज्ञा पातेही प्रद्युम्न निडर अंदर चला गया और पूर्ववत् वहां का राक्षसेंद्र भी प्रद्युम्न का शब्द सुन
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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