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________________ ( २३ ) इस दुःख मय कोलाहल को सुनकर श्रीकृष्ण एक दम नींद से जाग उठे और तुरंत नौकरों को देखने के लिये भेजा । नौकरों ने आकर प्रद्युम्न के हरण के हृदय विदारक समाचार सुनाए । उन्हें सुनते ही उनका चित्त घायल हो गया और वे पछाड़ खाकर ज़मीन पर गिर पड़े, अनेक शीतोपचार करने से होश में आए परंतु फिर बेहोश होगए और हाय २ करते हुए विलाप करने लगे । पुत्र के बिना चहुँ ओर अंधकार ही अधकार दिखाई देता था । सारी राज्य विभूति और धन धान्यादि सम्पदा त्रणवत् जान पड़ती थी । इसी शोकसागर में डूबे हुए एकदम उठे और धीरे २ रुक्मणी के महल की ओर चले । वहां पहुँच कर दोनों अधिक अधिक विलाप करने लगे । बुद्धिमान वृद्ध मंत्री गण ने संसार की असारता दिखलाते हुए और अनित्यादि भावनाओं का स्वरूप दर्शाते हुए निवेदन किया, कि महाराज, आप संसार M के स्वरूप को भली भांति जानते हैं, इस में जो जन्म लेता वह एक न एक दिन अवश्य मृत्यु का ग्रास होता है । अनेक बल्देव, कामदेव, नारायण, प्रतिनारायण इस पृथ्वी तल पर हो गए, परंतु अंत में वे भी यमराज के कठोर दांतों से दलगए और परलोक गामी बन गए। आप स्वयं बुद्ध हैं, शोक करना व्यर्थ है । शोक करने से दुख मिटता नहीं, किंतु
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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