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(१८) प्रतिमा है या किसी शत्रु ने रोक दिया है या कोई चरम शरीरी देह संकट में पड़ा हुआ है, या कोई मित्र आपत्ति में पड़ा है। यह विचार ही रहा था कि उसने अपने कुअवधि ज्ञान से सारा हाल जान लिया कि जिस दुष्ट पापी राजा मधु ने मेरी प्राण वल्लभा को हर लिया था और मुझे असमर्थ जान कर दुख दिया था, उसी का जीव तपश्चरण के प्रभाव से, वहां से चयकर स्वर्ग को प्राप्त हुआ था, अब वहां से देवांगनाओं के सुख भोग कर यहां रुक्मणी के उत्पन्न हुआ है । अतएव अब मेरा मौक़ा है, मैं इस दुष्टात्मा को क्षण भर में नष्ट करके अपना जी ठंढा करूंगा । यह विचार कर के नीचे उतरा और समस्त पहरेदारों को मोह की निद्रा से अचेत करके महल के जड़े हुए कपाटों के छिद्र में से भीतर घुस गया । वहां रुक्मणी को अचेत करके बालक को सेज पर से उठाकर बाहर निकाल लाया और आकाश में ले गया और क्रोध से नेत्र लाल करक उसको घुड़क कर बोला, रे रे दुष्ट, महापापी ! तुझे याद है, तूने क्या २ अन्याय किए, किस तरह मेरी प्राणवल्लभा को मुझ से जुदा किया। अब बता तुझे कौनर से भयंकर दुःखों का मज़ा चखाऊं ? आरे से चीर कर तेरे खण्ड २ कर डालूं, अथवा तुझे किसी समुद्र की गोद में बिठा दूं। तेरे हज़ारों टुकड़े करके दिशाओं को बलिदान करदं