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________________ (१५) निश्चय कर लिया है कि आपकी व मेरी जो आगामी संतान होगी उसका परस्पर विवाह विधि के अनुसार मित्रता का सम्बंध होगा । इससे उसको बड़ी खुशी हुई । उसने यह विचार कर कि पहिले मेरे ही पुत्र उत्पन्न होगा, अपनी दूती को रुक्मणी के पास यह कहला कर भेजा कि यदि पुण्य के उदय से पहिले तेरे पुत्र हुवा तो पहिले धूमधाम से उसी का विवाह होगा, इसमें संदेह नहीं है और मैं उसके लग्न के समय उसके पांव के नीचे अपने शिर के केश रक्खूगी, पश्चात् बरात चढ़ेगी। यह मेरा दृढ़ संकल्प है और कदाचित् पुण्यो. दय से पहिले मेरे ही पुत्र उत्पत्ति हुई तो तुम्हें भी मेरे कहे अनुसार अपने मस्तक के बाल मेरे पुत्र के चरणों में रखने होंगे । रुक्मणी ने यह बात स्वीकार करली और दोनों ने अपनी २ दासियों को राज्यसभा में भेजकर इस प्रण की कृष्ण बल्देव तथा सर्व यादवों की साक्षी लेली। . एक दिन रात्रि के पिछले समय में रुक्मणी ने छह स्वप्न देखे, प्रातःकाल उठकर विधिपूर्वक निवृत्त होकर तथा वस्त्राभूषण पहिन कर अपने प्राणनाथ श्रीकृष्ण जी के पास गई और उनसे स्वप्नों का फल पूछा । कृष्णजी स्वप्नावली को सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और कहने लगे, हे कांते ! निश्चय से तुम्हारे आकाश मार्गी और मोक्षगामी पुत्र होगा । दैव
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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