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________________ ( १३ ) जब कृष्ण जी रुक्मणी सहित महल में पहुंचे, सौभाग्यवती स्त्रियों ने आरती उतारी और मंगलीक गीत गाए गए। कृष्ण जी ने रुक्मणी को अपना नौखण्डा महल सौंप दिया और वे उस से इतना अगाढ़ प्रेम करने लगे कि भोजन स्नानादि सब काम रुक्मणी के ही महल में होने लगा । अन्य रानियों के यहां आना जाना बिल्कुल बंद हो गया । - यह समय सत्यभामा के लिये बड़ा शोक पद था, वह रात दिन चिंता में ग्रसित रहती थी और पति वियोग के असह्य दुःख से दिन २ दुबली होती जाती थी । इस पर भी प्रति दिन नारद जी आकर उसे चिड़ाया करते थे और कि क्यों तुझे याद है न, तूने ही घमंड में आकर मुझे तिरस्कार की दृष्टि से देखा था । * आठवाँ परिच्छेद क दिन रुक्मणी के कहने से कृष्ण जी सत्य -- भामा के महल में गए, परंतु उन्हों ने सिवाय सत्यभामा को चिढ़ाने के और कुछ न किया । धोके से रुक्मणी के पान की उगाल का मुख और गाल पर लेप करा दिया और पीछे: उसका हास्य उड़ाने लगे । इस से सत्यभामा को जितना प्रत्यभामा के GO B
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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