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________________ ( ४३५ ) उनको पाया देख रत्नवेगा आदि बहुत प्रसन्न हुई। रत्नवेगा ने उनके जाने के बाद जो जो घटनाएँ घटी, और श्रीच'द्र आदि का जो आगमन हुआ वह सब उन्हें कह सुनाया। श्रीचंद्र का आगमन सुन कर उन को बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्हें अपने कार्य की सिद्धि का पूर्ण रूप से विश्वास हो गया। वे दोनों शीघ्र ही अपना विमान तैयार कर के वहां से उड़े और कुशस्थल के बाहर जहाँ पर श्रीचन्द्र का पड़ाव पड़ा था वहाँ पर आकाश से उतरने लगे। आकाश से उतरते हुए और रत्नों की कान्ति से अाकाश को देदीप्यमान करते हुए उन दोनों को देख कर श्रीचंद्र सभा में सहसा उठ खडा हुआ। नीचे उतर आने पर परस्पर में प्रणाम आदि की प्रथा के पूर्ण होने के बाद वे दोनों संकेत पाकर योग्य सिंहासनों पर बैठ गये । कुछ देर बाद उन्होंने अपने आगमन का प्रयोजन कुमार को कह सुनाया। कुमार ने बिना किसी आनाकानी के उनकी प्रार्थना स्वीकार करली और अपने माता पिता, मित्र, सेठ, सेठानी, अधीनस्थ राजाओं और अपनी पत्नियों समेत विमान में बैठ कर आकाश मार्ग से पाताल नगर में पहुंचे वहां जाकर आवश्यक सामग्री तैयार करके वे उन दोनों विद्याधरों के साथ वैचा
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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