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________________ ( २७४ ) नाच गान सब बन्द होगया । कुछ ही समय के बाद वहां से हायरे ! की श्रावाज़ के साथ रोने की आवाज सुनाई दी। रोती हुई एक सखी शीघ्रता से मन्दिर के बाहर निकल कर उस उपवन में आई । ___ उसे देख कुमारने पूछा ? हे सुभ्र ! यह आश्चर्य कारी रंग में भंग कैसे हुआ ? कृपा कर कहो। मुझे अभी समय नहीं है । सखीने उत्तर दिया । इतने में दूसरी सखी आपहुँची और उसने पहली सखी से कहा, "बहन जल्दी जाओ और शीघ्र ही केले के पत्ते ले आयो । राजकुमारी बेहोश पड़ी है।" यह सुन वह शीघ्र ही गई और केले के पचे लाकर उसने उसे दे दिये। बाद में उसने प्रश्नकर्ता से कहा, 'भद्र ! सुनो इस हमारी स्वामिनी ने अपनी सखी को योगिनी के वेष में कुशस्थल भेजा था । कारण कि यह कई दिनों से श्रीचन्द्र पर आसक्त है । इसने अपना प्रेम प्रकट करने के लिये अपना चित्र तैयार करवा कर श्रीचन्द्र के पास भेजा था परन्तु वह दैवयोग से वहां न मिला । यह अभी अभी जो मलिन वेशधारिणी स्त्री मन्दिर में प्रविष्ट हुई है वही कुशस्थल से लौटी है । इसने जो जो हुआ वह सब अभी इसी मन्दिर में राजकुमारी को कह सुनाया है।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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