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मन के हारे हार है, मन के जीते जीत ।
मनोयोगते होत है, नीच ऊंच परतीत ॥ जीवन में मन-मजबूत आदमी ऊंचे उठते हैं। मन की विचार धारा ही हमारे प्राचारों को ठीक और बेठीक बनाती है। की हुई प्रतिज्ञा को निभाने में मन ही तो कारण होता है। अगर मन शिथिल हो जाय, तो मानव महामानव नहीं बन सकता । शिथिल मन वाले की स्थिति घास फूससे भी गई बीती होती है।
श्री चन्द्रकुमार अपने मन की तरंगों का तोल जोख कर रहा था। मजबूती से अपने जीवन में मनोयोग को लगा रहा था । अपनी जीवन-संगिनी चन्द्रकला को भी