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________________ ( १५१ ) बामा दीपचन्द्र के सारस पहूंच कर उनकीमतीजीरानी चन्द्रवती ने अपनी सन्या चन्द्रकला के सारे विचार ह सुनाये । सुनकर राजा कुछ हंसते हुए बोले-"विवाह संबंध-जीवन संबंध कहा जाता है। बच्चों के बनाये मिट्टी के घर जैसा वह नहीं है जो जब चाहा बनाया, किाडा जा सके विना कुल, शील, प्रभुत्न, विद्या, शरीर, धन आदि के विचार किये, विवाह को बात करनी भी हमें शोभा नहीं देती। एक अपरिचित मुसाफिर को कन्या दान करने में हमारा कोई यश न होगा। मेरे कंवर सहान राजा सुभगांग देव क्या कहेंगे..१ राजन्यों में हम कैसे मुह दिखायेंगे ? ! बेटा चन्द्रवती ! क्षमा करो। चन्द्रकला का विवाह तो स्वयंवर से किसी राज-राजेश्वर के साथ ही करेंगे। - उधर चन्दकला-जिनमंदिर में दर्शन पूजन विधि को करके अपनी माता के मास मइल में पहुंची। रास्ते में हवाशमलाली, चतुराने माता और मानमाह के द्वारा बारविषय में जो अरुचि प्रकट की थी उसे राजकुमारी को सुना दी । सुनते ही चन्द्रकला के हाथ पैर शिथिल हो गये। सिर घूमने लगा। वह बेहोश होकर भूमी पर गिर पड़ी। पास में सेवा में खडी सखियों ने बहुत प्रकार के'.
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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