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( १२८ ) कुमार घर पर नहीं था उस समय महाराजा प्रतापसिंह के मंत्री ने आकर सेठ से संदेश सुनाया कि आपके चिरंजीवो को बड़े आदर के साथ बुलाया है । सेठ ने बडी प्रसन्नता से कहा कि कुमार तो क्रीडार्थ गया हुआ है, चलिये मैं ही महाराज की आज्ञा का पालन करता हूं। छत्र चामर आदि राजकीय लवाजमे से सन्मानित हुए सेठ मंत्रियों के साथ राज--महल में पहुंचे । महाराज ने उनका अनुपम स्वागत करके पूछा सेठ ! कहियें आपके कुमार ने किस साधन से ऐसे अद्भुत कार्य किये ?
सेठने बडे विनय से उत्तर दिया महाराज ! मेरे बेटेके पास न तो कोई यंत्र और न कोई मंत्र न कोई जादुटोना है और न कोई देव की साधना ही। वह तो गुणंघर गुरु के पास सब विद्याओं में पारंगत हो बड़े धीर वीर और साहसी कामों को करता है। उसके पास पवन वेग महावेग नाम के घोड़ों वाला सुवेग नाम का दिव्य रथ है । इसी पर बैठकर वह असंभव कर्यों को संभव कर देता है । मुझे भी इसकी इस अद्भुत लीला का पता थोडे ही दिन हुए लगा है । एसा कहते हुए सेठने तिलकपुर की राधावेध की घटना विस्तार के साथ बडे रोचक ढंग से कह सुनाई और कहा कि देव ! आज भी वह अपने मित्र के साथ वैसी ही कोई क्रीडा के लिये रथ में बैठ कर गया है।