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________________ . (१२६ ) बात यह है कि मेरे पास जो घोड़े हैं वे बैग में वायु का भी तिरस्कार करने वाले हैं। वैसा ही सुन्दर सुदृढ उनके उपयुक्त रथ है जिसमें बैठकर मैं चार प्रहर में सौ योजन जा सकता हूँ। , उसके वचन सुन प्रसन्न चित्र माता-पिता ने कहा "ओ हमारे वीर बेटे ! तूने राधावेध करके राजकन्या के साथ विवाह कर हमें पूज्य क्यों नहीं बनाया ? । बीच में ही उचर देते हुए मित्र गुणचन्द्र ने वरमाला आदि के वृत्तान्त को विस्तार पूर्वक कह कर उन्हें और भी अधिक प्रसन्न किया । आपकी आज्ञा के विना यह काम संपन्न न हो सका। आज या कल में राजकुमारी या तिलक नरेश का कोई मंत्री आने ही वाला है। . .मित्र की बातों को सुन खुश हुए माता-पिता कहते हैं-हमारा यह सौभाग्य है जो ऐसा धीर वीर उदार गुणी पुत्र मिला । राजकन्या जैसे अमूल्य रत्न को विना ब्याहे आजाना क्या कुछ कम निस्पृहता है ? इस प्रकार पुत्र * की प्रशंसा करते हुए घर में भारी महोत्सव करके लोगों में बधाइयाँ बांटी।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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