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________________ विजयप्रशस्तिसार। केहिए उचित नहीं मालूम होते हैं। क्योंकि आपने बहुत द्रव्य की उत्पनिक कारणभूत 'दाण' और 'जीजीमा' नामका कर त्याग दिया है तो फिर उपर्युक्त कार्यों में भापको क्या विशेष चिन्ता हो सकता है। : सूरिजीने दिखलाये हुए उपर्युक्त छ कार्य राजाकी तुष्टि को करने वाले हुए । राजा ने अपने अधिकारी देशों में उपर्युक्त छ कार्य बन्द करने की सूचना के माशा पत्र सम्पूर्ण राज्य में भेजवा दिए। - अकबर बादशाह के प्राग्रह से सूरिजी ने इस साल का चा. तुर्मास तो लाहौर ही में किया । जैसे २ प्राचार्य महाराज के साथ में बादशाह का विशेष समागम होता गया तैले २ बादशाह के अंतःकरण में विशेष रूपसे 'दया भाव 'प्रगट होता गया। जैसे चन्द्रकी विद्यमानता में प्रकाश सुशोभित होता है, वैसे श्रीसूरीश्वर की विद्यमानता में लाभपुर (लाहौर ) शहर बहुतही दे. दीप्यमान होता रहा । श्रीबिजयसेनसूरि ने बादशाह की सभा में ३६३ बादिमों को परास्त किया। तथा बादशाह ने प्रसन्न होकर भीविजयसेनसूरि को 'सवाई' का खिताब दिया। यह बातें प्र. स्थान्तरों से ज्ञात होती हैं।
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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