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तीसरा प्रकरण ।
तीसरा प्रकरण। (हीरविजयसूरि का जन्म, दीक्षा, पण्डितपद, उपाध्यायपद,
प्राचार्यपद इत्यादि) . भीहीरविजयसरि का जन्म सुप्रसिद्ध गुजरात देश के भूषणरूप प्रल्हादपुर (पालनपुर ) में हुआ था। प्रल्हादपुर के विषय में एक पेसी कथा है:
"प्राचीनकाल में एक प्रल्हाद' नामका राजा हुआ था। उस राजाने श्रीकुमारपाल राजाकी बनवाई हुई सुवर्णमयी भीशान्तिनाथभगवान की प्रतिमा अग्नि में गलादी । और उसकी वृष बनाकर मच्चलेश्वर के सामने स्थापित किया। अब इस पापसे राजाको महादुष्ट-एका रोग उत्पन्न हुआ। इस रोग के कारण राजा का तेज लावण्य इत्यादि जो कुछ था सब नष्ट होगया । राजा ने अपने नाम से प्रल्हादपुर (पालनपुर) नामका ग्राम बसाया। इसके बाद श्री शान्तिनाथप्रभुकी मूर्तिको गलादेनेले जो पाप लगाया उसकी शान्ति के लिए राजा ने अपने नगर में श्रीपार्श्वनाथप्रभु का भीप्रल्हादनविहार' नामका चैत्य बनवाया। इस मन्दिर के बनवाने के पुण्य से राजा का रोग शान्त होने लगा। और कुछ दिनों के बाद राजा ने अपने असली रूप तथा गवण्य को प्राप्त किया । सारे नगर के लोग इस पार्श्वनाथप्रभुदर्शन से सर्वदा अपने जन्म को कृतार्थ करने लगे।" . इसी नगर में एक 'कुंरा' नामका श्रेष्ठी रहताथा । यह सापुरुष श्रेष्ट बुद्धि, दया-दाक्षिण्य-निर्लोभता-निर्मायिता-इत्यादि सद्गुणों से अलंकृत था। इतना ही नहीं यह सेठ ब्रह्मचारी गृहस्थों में एक शिरोमणि रत्न था। इस महानुभावको एक 'नाथी' नाम की बड़ी