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दूसरा प्रकरण। अव इस प्रकरण को यहां छोड़ करके दूसरे प्रकरण में प्रसंगा. नुसार श्रीमहावीर स्वामी की पाट परंपरा दिखाकर, मागे फिर इसी बार्ता का विवेचन किया जायगा। .
दूसरा प्रकरण।
(श्रीसुधर्मास्वामी से लेकर श्रीविजयदानसूरिपर्यन्त पाटपरंपरा
और श्रीतपगच्छकी उत्पत्ति इत्यादि ।) प्रिय पाठक ! भगवान श्रीमहावीर देव की पाट पर पहले पहल गणको धारण करने वाले, अहिंसा,सत्य,अस्तेय, ब्रह्म और अकिंचन रूप पांच महाव्रतो को प्रगट करने और पालन करने वाले श्रीसुधर्मा स्वामी हुए । तदनन्तर ' श्रीजम्बूस्वामी ' हुए । इसके बाद प्रथम श्रुतकेवली 'श्रीप्रमवस्वामी' हुए । प्रभवस्वामी के बाद 'श्रीसय्य. म्भवसूरि' हुए । जिन सय्यम्भवसूरिके गृहस्थावस्था में श्रीशांतिमाथ भगवान की प्रतिमा से मिथ्यात्वरूपी अन्धकार दूर होगया। इस पाट पर 'श्रीयशोभद्रसूरि' हुए । तदनन्तर 'श्रीसम्भूतिषिजय आचार्य' और उपस्लग्गहरस्तोत्रले मरकीकी व्याधि को दूर करने धाले 'श्रीभद्रबाहुस्वामी' हुए । यह दोनों गुरुभाई थे। इन्हों में श्रीसम्भूतिविजय पट्टधर जानना चाहिये । भीमद्रबाहुस्वामी गच्छ की सार-संभाल करने वाले थे, अतएव दोनों के नाम पाट पर लिखे जाते हैं। इन दोनों के पाट पर अन्तिम श्रुतकेवलो 'श्रीस्थुलीमद्र' हुए । भीस्थूलिभद्र स्वामी के बाद इनके मुख्य शिष्य आर्यमहागिरी और श्रीआर्यसुहास्त के नामके दो प्रतिभाशाली पुरुष आठवी पाट पर हुए । आठवी पाट पर इन दोनों के होने के