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________________ धन्य-चरित्र/375 कुमार ने कहा-"स्वर्ण-पुरुष को प्राप्त किये बिना मैं नगर में प्रवेश नहीं करूँगा, अतः तुम अधीरता को धारण मत करो।" इस प्रकार वार्तालाप करते हुए वे दोनों परिभ्रमण द्वारा दिन व्यतीत कर रात्रि में किसी भव्य जगह पर जाकर सो गये। प्रथम प्रहर बीत जाने के बाद धर्मदत्त तो निद्राधीन हो गया, पर कुमार जागृत था, तभी दिव्य-वाद्यों की ध्वनि सुनायी दी। तब उत्सुकतावश कुमार ने धर्मदत्त को नींद में ही छोड़कर तलवार हाथ में लेकर मार्ग का अनुमान करते हुए आगे चला। आवाज का अनुसरण करते हुए आगे चलते हुए दूर किसी वन के अन्दर एक विशाल यक्ष-भवन देखा। उस भवन में वाद्ययंत्रों के साथ नाटक होते हुए देखकर कुमार साहस धारण करते हुए उसके समीप पहुँचा। पर बन्द दरवाजेवाले देवघर को देखकर आश्चर्यचकित होते हुए बाहर ही खड़ा रहा। थोड़ी देर बाद इधर-उधर देखते हुए दरवाजे में एक छिद्र दिखायी दिया। उस छिद्र से देखते हुए देवकन्याओं को नृत्य करते हुए देखा। उन सभी के मध्य रूप व लावण्य में सबसे सुन्दर स्त्री को देखकर विस्मित हो गया। पर लक्षणों के द्वारा उसे निश्चय हो गया कि यह मनुष्य-स्त्री है। अतः विचार करने लगा कि यह नारी देव-कन्याओं के मध्य कैसे रह रही है? अहो! विधि की रचना देखो! मनुष्य जाति की होते हुए भी रूप में देवांगनाओं को भी तुच्छता का एहसास कराती है। इस प्रकार विचार करते हुए गहराई से देखते हुए 'यह मनुष्य स्त्री ही है" इस प्रकार निर्णय करते हुए घड़ी मात्र वहाँ रुका। तभी धर्मदत्त की याद आयी-'अहो! मैं धर्मदत्त को निद्रा में ही छोड़कर यहाँ चला आया, पर वहाँ कोई जंगली पशु घूमता हुआ आ गया, तो उसकी क्या दशा होगी? जगत में ऐसे कौतुक तो बहुत होते हैं। अतः मैं शीघ्र ही वहाँ जाऊँ। यह विचार कर अनुमान से देखता हुआ धर्मदत्त के समीप आया। वह भी उसी क्षण जागा था। कुमार ने कहा-“हे भद्र! क्या तुमने कुछ सुना?" उसने कहा-"स्वामी! ये बोलते हुए शृंगाल तथा कलकलायमान भैरवी की आवाज सुनायी पड़ती है, और कुछ नहीं।" धर्मदत्त के कथन को सुनकर कुमार ने मुस्कुराते हुए कहा-"तुमने तो भर-नींद में रात्रि गुजारी है। मैंने तो जीवन में अविस्मरणीय कौतुक देखा है।" धर्मदत्त ने पूछा-"क्या? कैसे? कहाँ?" कुमार ने कहा-"आज एक प्रहर रात्रि बीतने पर आतोद्य-गीतादि की आवाज सुनायी दी। उसका अनुसरण करते हुए उस आवाज तक पहुँचा, तो एक बन्द दरवाजेवाले देवकुल को देखा। दरवाजे में रहे हुए छिद्र से मैंने देखा कि वहाँ 108 देव-कन्याएँ नृत्य कर रही हैं। उन सभी के मध्य देव-कन्याओं के रूप को जीतनेवाली एक मनुष्य-कन्या को नृत्य करते हुए देखा। घड़ी-मात्र वहाँ रहने के बाद तुम्हारे अकेलेपन की चिन्ता करते हुए मैं वापस शीघ्र ही लौट आया। पर वह
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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