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धन्य-चरित्र/352 श्रेष्ठ द्रव्यों से मिश्रित रम्य रसों को मिलाकर स्वादिष्ट वस्तुएँ तैयार करवायीं। तब तक समय भी हो गया। मध्याह्न काल से दो घड़ी ऊपर जाने पर कुमार आदि सभी को भूख लग गयी। तब कुमार ने पूछा-“रसोई बनी या नहीं? मुझे तो भूख लग गयी है।"
तब उन्होंने कहा-"स्वामी के आदेश मात्र से ही तैयार हो गयी है।"
फिर कुमार ने वहाँ से उठकर उन सभी के साथ विविध रसों से युक्त रसोई का भोजन किया। पुनः नंदनवन के समान वाटिका में जाकर, भव्य स्थान पर बैठकर ताम्बूलादि के द्वारा मुख-शुद्धि करके पुन: गीत आदि शुरू कर दिये। इसी समय नृत्य करने में कुशल एक विदेशी नर्तकी आ गयी। जन समूह व उन जुआरियों के अत्याग्रह से वह कुमार के सामने आकर नृत्य करने लगी। विविध हाव-भाव, कटाक्ष, विभ्रम, अंग-विक्षेपादि के द्वारा अत्यद्भुत स्वर, ग्राम, मूर्च्छना आदि से कुमार के मन को मोह लिया। कुमार भी एकटक निर्निमेष दृष्टि से उसे देखने लगा। इस प्रकार दिन अस्त होने से मुहूर्त शेष रहते हुए कहा कि ऐसा दिव्य नाटक श्रेष्ठी पुत्र के बिना कौन दिखाये? लोगों की प्रशंसा सुनकर आनन्दित होते हुए कुमार खूब सारा धन देकर पुनः यान पर सवार होकर घर की ओर रवाना हुआ। मार्ग में उन जुआरियों ने कहा-"स्वामी! आज हमारा मन आपकी कृपा से अत्यन्त प्रसन्नता को प्राप्त हुआ। पर आपका मन प्रसन्न हुआ या नहीं?"
कुमार ने कहा-“ऐसा नृत्य मन को क्यों नहीं प्रसन्न करेगा? फिर कभी और ऐसा नृत्य देखेंगे।"
__ तब उन्होंने कहा-"इसने तो नृत्य अच्छा ही किया था, पर कामपताका के नृत्य के आगे तो इसका नृत्य सोलहवीं कला के बराबर भी नहीं है।"
कुमार ने कहा-“वह कौन है?'
उन्होंने कहा-“हमारे नगर के राजमहल के समान बहुत बड़े आवास में रहती है। स्त्रियों के जो कोई भी गुण हैं, उन सबमें वह प्रधान रूप रखती है। जिसको देखने मात्र से देव कन्या का भ्रम होता है। वह भी आप जैसे गुणवानों के आगे ही अपनी कला का प्रदर्शन करेगी, हर-एक के आगे नहीं। स्वामी! ज्यादा क्या कहा जाये? आप जैसे दर्शक के आगे जब वह नृत्य करेगी, तो जो रस उत्पन्न होगा, उसका वर्णन करने में कौन समर्थ है? स्वामी भी जान जायेंगे कि उसका क्षण-भर का भी संग क्या रंग लाता है?"
कुमार ने पूछा-"क्या पहले कभी आप लोगों ने उसका नृत्य देखा है?"
उन्होंने कहा-"हम जैसे मंदभागियों को कब ऐसा अवसर मिले? पर एक बार दो वर्ष पहले राजा ने अत्यन्त आदरपूर्वक उसका नृत्य करवाया था, तब आप जैसे पुण्यवानों के पीछे-पीछे जाकर देखा था, वह हम आज तक नहीं भूले हैं। अब आपकी चरण, सेवा के प्रसाद से बहुत दिनों से इच्छित मनोरथ पूर्ण करने का