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________________ धन्य-चरित्र/343 पुत्र के लिए प्रयास करूंगा। इसके बाद श्रेष्ठ मंत्र, तंत्र, यंत्र, देवी, देवता के पूजन आदि मिथ्यात्व-कार्यों में प्रवृत्त हुआ। दुःखी व्यक्ति क्या नहीं करता? क्योंकि : आर्ता देवान् नमस्यन्ति, तपः कुर्वन्ति रोगिणः । निर्धना विनयं यान्ति, क्षीणदेहाः सुशीलिनः ।। दुःखी लोग देवों को नमस्कार करते है, रोगी व्यक्ति तप करते हैं, निर्धन विनय को प्राप्त होते हैं और अच्छे चारित्रवाले क्षीण शरीरी हो जाते हैं। और भी, इहलोइयम्मि कज्जे, सव्वारंभेण जह जणो कुणइ। ता जइ लक्खंसेण वि, परलोए तरा सुही होइ।। सर्वारम्भ के द्वारा मनुष्य इसलोक के हितार्थ जो भी करता है, उसका लाखवाँ अंश भी अगर परलोक के लिए करे, तो वह सुखी हो जाता है। एक बार उसके मित्र धनमित्र ने कहा- हे मित्र! तुम मिथ्यात्व में मत पड़ो, क्योंकि इसके द्वारा स्वयं भव-भव के अंधकूप में गिर रहे हो। आगे भी तुम्हारा अनुकरण करते हुए तुम्हारे पुत्रादि का मिथ्यात्व भी गाढ़तर हो जायेगा और परम्परा से वे भी डूबते जायेंगे। कहा भी है सम्मत्तं उच्छिंदिय, मिच्छत्तारोवणं कुणई निअकुलस्स। तेण सयलो वि वंसो, दुग्गइमुहसम्मुहं नीओ।।1।। मिच्छत्तं उच्छिंदिय, सम्मत्तारोवणं कुणइ निअकुलस्स। तेण सयलो वि वंसो, सिद्धिपुरीसंमुहं नीओ।।2।। सम्यक्त्व का उच्छेद करके जो मिथ्यात्व का आरोपण करता है, उसके द्वारा अपने कुल का सम्पूर्ण वंश दुर्गति के सम्मुख ही ले जाया जाता है। और __ मिथ्यात्व का उच्छेदन करके जो सम्यक्त्व का आरोपण करता है, उसके द्वारा अपने कुल का सम्पूर्ण वंश सिद्धिपुरी के सम्मुख ले जाया जाता है। देवशर्मा की कथा एक गाँव में देवशर्मा नामक ब्राह्मण ने पुत्र के लिए पाद्र देवता की आराधना की। उसने कहा-“हे भगवती! यदि मेरे पुत्र होगा, तो तुम्हारे देवकुल का द्वार भव्य-रीति से बनवाऊँगा। उसके आगे अनेक वृक्षों से शोभित तालाब कराऊँगा। प्रतिवर्ष एक बकरे की बलि चढ़ाऊँगा।" ऐसी याचना के अनन्तर भाग्य से उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। हर्षित-हृदय से महोत्सव करके उस पुत्र का नाम देवीदत्त रखा। फिर भक्ति-वश देवशर्मा ने देवी के भवन का उद्धार किया। उसके सामने तालाब बनवाया। उसके चारों ओर पाली बनवाकर उस पर वृक्ष आरोपित करवाये। इस प्रकार क्रमशः आयु का क्षय होने पर घर, पुत्रादि की चिन्ता में आर्तध्यानी होकर मरकर उसी नगर में बकरे के रूप में पैदा
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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