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धन्य - चरित्र / 342
दक्षिण की ओर मुख करके सोता है, पाँव से पाँव को धोता है, मूत्र को ऊपर की ओर उछालता है और चतुष्पथ पर थूकता है, उसे भी लक्ष्मी त्याग देती है । इत्यादि नीतिशास्त्र में हीन - पुण्यवालों के अनेक लक्षण कहे गये है। दोनों हाथों से शरीर को खुजलाना दाँतो से मूँछ को चबाना आदि दरिद्रता के लक्षण जिसके शरीर में दिखायी देते हैं, उसको महा - लब्धियों की सिद्धि नहीं होती और बहुत ज्यादा धन भी नहीं होता । तुममें तो ये सभी लक्षण प्रत्यक्ष दिखायी पड़ रहे हैं, जो धन के सूचक नही हैं। अतः सच - सच कहो । वास्तव में तुम्हारे साथ क्या हुआ है ? व्यर्थ ही क्यों चिल्ला रह हो?"
तभी सभासदों ने भी कहा - "स्वामी ने जो कहा है, वह यथार्थ है । पर इसी से पूछना चाहिए कि तुमने स्वर्ण-पुरुष कैसे प्राप्त किया? इसके बोलने पर सारा वृत्तान्त ज्ञात हो जायेगा ।"
सभासदों के कथन को सुनकर राजा ने पूछा - "हे भाई! कहो ! किस उपाय से व किसकी सहायता से तुमने स्वर्ण - पुरुष पाया?
तब उसने कहा—” हे देव! सुनिए ! इसी नगर में श्रीपति नामक श्रेष्ठी थे । उनके घर में लक्ष्मी इतना विलास करती थी कि उसका कमलावासा नाम भी विस्मृत हो गया। उनकी पत्नी का नाम श्रीमती था । उसके साथ श्रीमती अपने घर आयी हुई अपनी सखी को पुत्र को दुलराते हुए देखकर स्वयं के पुत्र न होने से अतीव दुःखत हुई। क्योंकि
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अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिशः शून्या अबान्धवाः । मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्या दरिद्रता । ।
पुत्र के बिना घर सूना है, बान्धवों के बिना दिशाएँ सूनी हैं। मूर्ख का हृदय सूना है और दरिद्रता से सब कुछ सूना है।
अतः भोजन के अवसर पर घर आये हुए श्रेष्ठी के द्वारा उसे दुःखी देखकर दुःख का कारण पूछा गया। उसने भी भोजन के बाद दुःख का कारण बताया। वे भी दुःखी होकर विचार करने लगे ।
गेहं पि तं मसाणं जत्थ न दीसन्ति धूलिधूसरा निच्चं । उट्ठन्ति पडन्ति रडन्ति दो तिन्नि डिंभाइ | | | |
जिस घर में दो तीन बच्चे धूल-धूसरित होकर उठते, गिरते, रोते हुए दिखायी नहीं देते, वह घर श्मशान तुल्य है । और भी,
पियमहिलामुखकमलं, वालमुहं धूलिधूसरच्छायं ।
सामिमुहं सुप्पसन्नं, तिन्नि वि पुण्णेहि पावन्ति । । 1 । ।
प्रिय - स्त्री के मुखकमल को, धूलि - धूसरित बालक के मुख को तथा स्वामी के मुख को प्रसन्न देखना - ये तीनों बातें पुण्य से ही प्राप्त होती है।"
इस प्रकार विचार कर अपनी प्रिया से कहा - "हे प्रिये ! दुःख मत करो! मैं