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________________ धन्य - चरित्र / 244 एक बार पिछली रात्रि के समय शय्या पर सोये हुए अभय ने चिन्तन किया "अहो ! मैंने उज्जयिनी से निकलते वक्त प्रद्योत के सामने प्रतिज्ञा की थी। अभी तक मैंने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण नहीं की । उक्त वचनों की प्रतिपालना में ही पुरुषत्व हैं। अतः उसके प्रतिपालन के लिए मुझे अवश्य ही उद्यम करना चाहिए।" प्रभात होने पर राजा व धन्यकुमार को कहकर वचन के पालन की तैयारी में संलग्न हो गया । सर्वप्रथम उसने वैश्या कुल की जातीय, सोलह वर्ष प्रमाण पुरुष को आसक्त बनाने की कला में अति निपुण, भौं- नेत्रादि के हाव-भाव से कटाक्ष द्वारा आकर्षित करने की कला में देवियों के रूप को जीतनेवाली, रूप-यौवन से युक्त, कोकिल-कण्ठी दो तरुणियों को ग्रहण किया। फिर मुख - नेत्रादि विलास में प्रद्योत के समकक्ष एक पुरुष को ग्रहण किया। उसे धन देकर आगे जो कुछ भी करना है, वह सब अच्छी तरह समझा दिया। उसके बाद उस देश में क्रय-विक्रय के योग्य क्रयाणक, श्रेष्ठ वस्त्र तथा विविध रत्नादि ग्रहण किये। ग्रहण करके गाड़ियाँ, ऊँट, बैलादि यथायोग्य ग्रहण किये। उन्हें दूर देश की भाषाओं से अवगत कराकर उसी प्रकार के वस्त्रादि से भूषित किया। स्वयं ने भी वैसा ही वेष धारण किया । — 1-कार्य धन्यकुमार के इस प्रकार सभी सामग्री को तैयार करके राज्य-व मस्तक पर डालकर और स्वयं राजा से पूछकर किसी भव्य दिन शुभ मुहूर्त में भव्य शकुनों के द्वारा उत्साहित होते हुए राजगृह से मालव देश की ओर प्रयाण किया। वे दो श्रेष्ठ तरुणियाँ वस्त्र से आवृत रथ पर आरूढ़ करायी गयीं। अनेक सैनिक आगे और पीछे चलने लगे। अनेक दासियाँ उस रथ की सेवा में नियुक्त की गयीं। अगर कोई पूछता, तो रथिक सैनिक कहते - " अन्तःपुर है ।" एक डोली में प्रद्योत की प्रतिकृतिवाला पुरुष सिखाया हुआ अनाप-शनाप बोलता था। स्वयं अभय एक भव्य अश्व - रथ में देशान्तर से लायी हुई पोशाक से भूषित होकर बैठा हुआ था। आगे अनेक सैनिक थे। पीछे क्रयाणक से भरे हुए वाहन सैनिकों से आवृत होकर चल रहे थे। इस प्रकार लगातार चलते हुए अवन्ती को प्राप्त हुए । अनेक भव्य उपहार लेकर अनेक देशान्तरीय वेषधारी सुभटों के साथ अभय राजसभा में गया। उपहारों को आगे रखकर राजा को प्रणाम करके खड़ा रह गया। राजा ने भी अद्भुत उपहारों को देखकर प्रसन्न होते हुए उससे सादर कहा - "हे श्रेष्ठीन् ! किस देश से पधारे हैं?" तब अभय ने करांजलि हुए कहा - " स्वामी ! अति दूर देश से आये हैं।
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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