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धन्य-चरित्र/243 श्रीजिनाज्ञा से अलंकृत हैं। जगत के लोगों के और हमारे आप अनंत उपकारी है। अतः हे बहनोई! आपके दर्शन करके मैं कृतकृत्य हूँ। जो जिनाज्ञा में गाढ़ अनुरागवाले तथा दृढ़ भक्तिवाले होते हैं, वे मोक्ष की अभिलाषा रखनेवालों के लिए सदैव पूज्य होते हैं। लौकिक सम्बन्ध से जो स्नेह होता है, वह तो संसार की वृद्धि का हेतु होता है। जो लोकोत्तर सम्बन्ध से स्नेह होता है, वह सम्यक्त्व की निर्मलता तथा मुक्ति का हेतु होता है। अतः आप तो हमारे लिए दोनों ही प्रकार से पज्य हैं।
___ और भी, पूज्य पिताजी के द्वारा कल ही आपके आगमन से शुष्क वन का नवीन रूप से पल्लवित होना, धूर्त का दमन, गज-दमन, राज्य की स्थिति का स्थिरीकरण आदि अनेक चमत्कार तथा कृतघ्नी हतभागी आपके भाइयों को अमित सम्पत्ति देकर भेजना आदि घटनाएँ अत्यन्त प्रसन्नता के साथ सुनायी गयीं। यह सब सुनकर तो मेरा हृदय आश्चर्य, पुलक, प्रमोद, हर्ष, स्नेह आदि से अत्यन्त पूरित हो गया। अभी तक भी वह उल्लास हृदय में नहीं समाता। हम तो आपके साथ को कल्पवृक्ष, कामधेनु, चिंतामणि तथा कल्पलता के मिलने से भी ज्यादा मानते हैं। अतः इस राज्यऋद्धि, समृद्धि और मुझे अपना ही समझें। इसमें कोई संदेह नहीं है।'
___ मंत्री के वचनों को सुनकर धन्य ने कहा-"मंत्रीराज! गुणों को प्राप्त होकर दया से आर्द्र हृदयवाले कृतज्ञ आप जैसे सज्जन दूसरों के परमाणु जितने गुणों को पर्वत जितना बना देते हैं। गुणों से न्यून होने पर भी सज्जन उन्हें महानता पर आरोपित कर देते हैं। पर मैं तो कितना-मात्र हूँ। मैं तो-मात्र वणिक हूँ। मुझसे क्या हो सकता है? अगणित पुण्यों से समृद्ध आपके पुण्य से ही यह सब हुआ है। सेवक की जो जय होती है, वह स्वामी के पुण्य से ही जाननी चाहिए।"
__ इस प्रकार परस्पर प्रशंसा करते हुए एक-दूसरे के हृदय को अनुरक्त बनाते हुए उनका परस्पर अत्यन्त गाढ़ प्रेम सम्बन्ध हो गया। उस दिन से प्रतिदिन मिलना, जिनयात्रा आदि के लिए जाना, राजसभा को अलंकृत करना, वन-उपवन आदि देखना इत्यादि कार्य दोनों मिलकर करने लगे। यदि किसी कार्य की व्यग्रता के कारण आपस में किसी दिन नहीं मिल पाते, तो वह दिन दोनों के लिए अत्यन्त दुःखदायी होता था। इस प्रकार महा-अमात्य अभय 'कुबेर के साथ ईश्वर की तरह' धन्य के साथ प्रीति-सुख का अनुभव करता था। छ: प्रकार के प्रीति-लक्षणों को पूर्णता के साथ निभाता था। एक प्राण दो शरीर की तरह वे दोनों सुखपूर्वक अपना समय व्यतीत करते थे।