SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आ. श्री लक्ष्मीसागरसूरि (तिरेपनवें पट्टधर) आ. श्री रत्नशेखरसूरि के पट्ट पर आ. श्री लक्ष्मीसागरसूरि आये । इनका जन्म वि.सं. १४६४, दीक्षा वि.सं. १४७७, आचार्यपद वि.सं. १५०८ और स्वर्गवास वि.सं. १५४७ में हुआ । आप प्रकृति के शान्त और तपस्वी थे । आपके नेतृत्वकाल में नये ५०० साधु हुए थे । वि.सं. १५२३ में आपने मातर तीर्थ की स्थापना की। आपके शिष्य पं. लावण्यसमयगणि पर १६ वर्ष की उम्र में सरस्वती प्रसन्न हुई । इसीलिए इनके उपदेश से अनेक राजा महाराजा प्रभावित थे एवं इन्होंने लोकभाषा में सिद्धान्त चोपाई (लोंकामतसमीक्षा), गौतम-पृच्छा, अनेक रास-छंदस्तवन और सज्झाय रची। आचार्य श्री सुमतिसाधुसूरि (चौवनवें पट्टधर) आ. श्री लक्ष्मीसागरसूरि के पट्टधर श्री सुमतिसाधुसूरि ने 'दशवैकालिकसूत्र' पर लघुटीका रची थी, जो आज भी प्रसिद्ध है । आपका जन्म वि.सं. १४९४, दीक्षा वि.सं. १५११, आचार्य पद वि.सं. १५१७ और स्वर्गवास वि.सं. १५८१ में हुआ। आचार्य श्री हेमलिमलसूरि (पचपनवें पट्टधर) __ आ. श्री सुमतिसाधुसूरि के पट्टधर आ. श्री हेमविमलसूरि हुए । इनका जन्म वि.सं. १५२० में, दीक्षा सं. १५२७, आचार्यपद वि.सं. १५४८ और स्वर्गवास वि.सं. १५८३ में हुआ। आपके समय में साधु-समुदाय में काफी शिथिलता फैल गई थी। फिर भी आपकी आज्ञा में रहने वाले साधु आचार-संपन्न थे । इसी कारण लुंकागच्छ के ऋषि हाना, ऋषि श्रीपति, ऋषि गणपति आदि अनेक आत्मार्थी हुँका मत का त्याग कर आपकी आज्ञा में आये थे । कडुआ-मत, बीजा-मत और पायचंदगच्छ का प्रवर्तन आपके समय में 'आजकल शास्त्रोक्त साधु दृष्टिगोचर नहीं होते' इस प्रकार की प्ररूपणा करने वाले कटुक नामक त्रिस्तुतिक गृहस्थ से वि.सं. १५६२ में (१११)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy