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________________ अनेक राजा महाराजा प्रभावित थे और आपके उपदेश से अपने-अपने राज्यों में 'अमारि' का प्रवर्तन कराते थे । आपने उपद्रव-निवारण के लिए 'संतिकर' स्तोत्र की रचना की । 'उपदेशरत्नाकर', 'जयानन्दकेवलि-चरित', 'मित्रचतुष्क-कथा', 'शान्तसुधारस', 'अध्यात्म-कल्पद्रुम' इत्यादि आपकी ग्रन्थरचना है। आपके शिष्य पं. शुभशीलगणि अपरनाम शुभसुन्दर गणि विद्वान् और शीघ्रकवि थे । वि.सं. १४९२ से वि.सं. १५४० तक इन्होंने निम्नलिखित ग्रन्थों की रचना की : विक्रमचरित, पुण्यधननृपकथा, प्रभावकचरित, भरहेसरबाहुबलिवृत्ति, शत्रुजयकल्प स्वोपज्ञवृत्ति, शालिवाहननृपचरित, पुण्यसारकथा, स्नात्रमाहात्म्य, भक्तामरस्तोत्रमाहात्म्य इत्यादि । आचार्य श्री रत्नशेखरसूरि (बावनवें पट्टधर) आ. श्री मुनिसुन्दरसूरि के पट्टधर आ. श्री रत्नशेखरसूरि का जन्म वि.सं. १४५७ मतान्तर से वि.सं. १४५२ में, दीक्षा वि.सं. १४६३, आचार्यपद वि.सं. १५०२ और स्वर्गवास वि.सं. १५१७ में हुआ । आप विद्वान् और वादी थे । आपको 'बाल-सरस्वती' का बिरुद था । आपके 'श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति', 'श्राद्ध-विधि स्वोपज्ञवृत्ति' और 'आचार-प्रदीप' प्रसिद्ध ग्रन्थ है। लुका-मत प्रवर्तन आपके समय में वि.सं. १५०८ में जिनप्रतिमा का विरोधी 'लुका मत' प्रवृत्त हुआ । इस मत में 'भाणा' नामक व्यक्ति ने वि.सं. १५३३ में प्रथम साधुवेश धारण किया । (११०)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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