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किया । साथ की स्त्रियों के पूछने पर उसने उसके पास जाने
की अपनी सहमति प्रकट की । तब मायावी वज्रसुंदरी ने आकाश मार्ग से जाते हुए आवाज दी । जयानंद राजा के लिए चक्रसुंदरी को ले जा रही हूँ । फिर नगर के बाहर आकर किसी मायावी स्त्री को भेजकर वे सभी आयुध मंगवा लिये । राजा ने अपने सैनिकों को भेजे, वे सब हारकर वापिस आये । राजा ने बड़ी सेना भेजी, उसे भी थका दिया । चक्रायुध एक स्त्री के इस पराक्रम से अचंभित रह गया । तभी गुप्तचरों ने आकर चक्रायुध से कहा कि "उस स्त्री की सहायता में पवनवेग आदि दक्षिण श्रेणि के अनेक राजा उसके बिना बुलाये भी अपनी-अपनी विशाल सेना के साथ आ गये है । वे सब उस स्त्री को प्रणाम करते भी देखे गये है।" चक्रायुध ने सोचा 'मेरे नगर में आकर मुझे क्षुभित करने की धृष्टता इन्होंने मरने के लिए की है क्या?' उसने स्वयं युद्ध में जाने के लिए तैयारी की । शस्त्र सज्ज होकर हाथी पर बैठते समय मस्तक पर से मुकुट गिर गया, हाथी ने मूत्र और निहार दोनों एक साथ कर दिये, सामने छींक हो गयी, वस्त्र पैरों में आ गया, चामरधारिणी के हाथ से चामर गिर गया बिना कारण छत्र दण्ड कम्पायमान हुआ । यह देखकर मंत्रियों ने कहा "राजन्! इन अपशुकनों के कारण रणयात्रा ठीक नहीं लगती । एकबार आसन पर बैठो।" उसने वैसा ही किया । तब मुख्य सचिव ने कहा "राजन्! आपके महाबलशाली सेनानियों का पराजय एक स्त्री नहीं कर सकती । पवनवेग भोगरती आदि विद्याधर राजा क्या एक स्त्री के सेवक होकर रहेंगे? हमें तो यह आपके वचनों से क्रुद्ध वज्रसुंदरी का पति जयानंद राजा ही दीखता है । आप स्त्री से जीते गये ऐसा अपयश देने के लिए स्त्री का रूप करके आया है। कोई भी समर्थ पुरुष आप के द्वारा कथित दासीपति और दासी