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उसके शरीर में प्रवेश किया, जो स्मरण करने पर सर्व इच्छित देती है । फिर जयानंद देवी की मूर्ति की पूजाकर देवगृह से बाहर आया । पवनवेग ने जयानंद राजा का स्वागत किया । जयानंद राजा ने जिनदेव गुरु की सेवा पूजाकर उत्तम आहार से पारणा किया । फिर पवनवेग ने आकाशगामिनी आदि अनेक विद्यायें दी । कुमार ने भी उन विद्याओं को अल्प प्रयास से सिद्ध कर ली । जयानंद राजा जालंधर पत्तन में आया । योगिनियों को बुलाकर कहा “पवनवेग के पुत्र को छोड़ दो । नहीं तो मैं तुमको नहीं छोडूंगा ।" उसके अंगद के प्रभाव से उन्होंने कहा "हमें छोड़ो हम उसको छोड़ देंगी।" फिर उन्होंने उसे लाकर जयानंद के सामने रखा । पिता के कहने से उसने कुमार को प्रणाम किया ।
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योगिनियों ने जयानंद से अतिथि होने के लिए प्रार्थना की। वह उनका अतिथि रहा । वह वाराह्य भवन की दिव्यशय्या में निःशंक सोया । योगिनियों ने अपनी स्वामिनी 'कामाक्षा' को सब वृत्तांत कहा । उसने कहा "मैं अभी उसे मोहित करती हूँ ।" वह वहाँ आयी । उसने अनुकूल उपसर्गकर अनेक प्रयत्न किये । पर वह शीलवान् दृढ रहा । उसने प्रसन्न होकर उसे वज्रसमान लोहमुद्गर, अक्षय तूणीर, वज्रपृष्ठ धनुष्य, आग्नेयशस्त्र, नागपाश आदि अनेक दिव्यशस्त्र दिये । किसी भी प्रकार का रोग न हो ऐसा नैपथ्य दिया, मरकी आदि उपद्रव निवारक मुकुट, ज्वरनाशक कुंडल, कुष्ठादिनाशक कंठाभरण, वशीकर हार, कटीसूत्र आदि अलंकार दिये । विषहर मुद्रा, शाकिनी आदि दोषनाशक केयूर घातादिव्रणनाशक माणिक्य' तुष्ट देव क्या न दे ? राजा ने उसे प्रणाम किया । जाकर योगिनियों से कहा "ऐसा सत्पुरुप सभी प्रकार से आराध्य है । ऐसों का सत्कार शीघ्र फलदायक होता है। योगिनियों ने आकर पुनः पुनः क्षमायाचना कर दिव्य वस्त्राभरण आदि दिये । फिर वज्रवेग ने भी उन योगिनियों की
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