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एकबार कुमार ने विजयराजा का आग्रहपूर्वक राज्याभिषेक करवाया । राजा ने कुमार को युवराज बनाया । अपने पिता की आज्ञा लेकर कुमार देश जीतने चला और आस-पास के जो राज्य उसके आधीन नहीं थे, उन सब को जीतकर पिता के चरणों में आया । फिर श्रीविशालपुर आदि देशों के राजा अपने जामाता की प्रख्याती सुनकर अपनी-अपनी पुत्रीयों को ले आये। सभी का | सत्कार किया गया । एकबार पिता श्वसुर आदि राजाओं के साथ | जयानंदकुमार परदेश से आयी एक नाटक मंडली का नाटक देख | रहा था । उसमें एक नटी जब पद्मरथ भूपाल की दो कन्या एक | भिल्ल को दी दूसरी राजकुमार को दी । वह गानेवाली है, ऐसे भावार्थ के गीत गाने लगी । और उसे रोना आ गया। सुकंठ नामके मुख्य स्वामी ने कहा "यह क्या कर रही है। यह समय तो इनाम पाने का है।" उसने रोना रोककर एक दोहा कहा "कहाँ पद्मपुर, कहाँ पद्मरथ, विजया आज्ञाभंगकरी भिल्लको दी, और जयसुंदरी गायन गा रही है।" इस आशय का एक दोहा बोली! पद्मारानी उसे पहचान गयी। माँ बेटी मिली । पूछा तब | उसने कहा "हे पिताजी ! मैं पुंदरपुर नरकुंजर पति के साथ ससुराल गयी । वहाँ एकदिन हम क्रीड़ा के लिए उद्यान में गये। वहाँ महासेन पल्लीपति ने हमला किया । नरकुंजर युद्ध में हार गया और भागा । पल्लीपति केलिगृह में से मुझे पकड़कर ले गया । उसने मुझे पत्नी बनाने हेतु प्रयत्न किया। मैं तीन दिन उपवास में रही । उसकी पूर्व पत्नि ने मुझे औषधि रूप में भोजन में चूर्ण दिया, जिससे मुझे जलोदर हो गया। पल्लीपति ने एक दिन आये हुए सुकण्ठ के गीत से रंजित होकर उसे मुझे दे दी। वह रूप लुब्ध नीरोग होनेकी आशा से ले गया। पद्मखंड पत्तन में सुमति वैद्य के द्वारा मेरा शरीर नीरोग हुआ । उसने मुझे
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