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न हो। धनदेव कुछ कार्य लेकर घर से निकलकर यहाँ आया । वह धनदेव मैं हूँ। मेरा दुःख तुझे कहा । तुझसे अधिक मैंने (पक्षी बनकर) दुःख भोगा है। तू तो भाग्यवान है कि शीघ्र उनसे दूर हो गया । "
इस प्रकार सुनकर मदन ने विस्मित होकर कहा "हे मित्र ! इस दुःखमय संसार को छोड़कर आत्महित कर लें। दोनों समान वृत्तिवाले और प्रीतिवाले हो गये । विमल बाहु गुरु मिले । उनके पास धर्मोपदेश सुनकर प्रतिबोधित होकर प्रव्रज्या ग्रहण कर ली । गुरु के साथ विहार करने लगे । द्वादशांगी के धारक अनेक प्रकार के तप तपते हुए विधिपूर्वक आयुष्य पूर्ण करके पंच पल्योपम आयुवाले सौधर्म देव हुए । देव सुख भोगकर, मदन का जीव विजय पुर के समरसेन राजा की विजयावली रानी की कुक्षी से मणिप्रभ नामक पुत्र हुआ । वह राज्य सुख भोगकर, कमलवन को म्लान देखकर, प्रतिबुद्ध होकर, पुत्र को राज्य देकर, जिनेश्वरसूरिके पास दीक्षित हुआ । तप से अवधिज्ञानी और आकाशगामिनी शक्तिवाला हुआ । धनदेव का जीव स्वर्ग से च्यव कर रथनुपुर चक्रवाल नगर में महेन्द्रसिंह नामसे राजा हुआ । उसकी पत्नी रत्नमाला, पुत्र रत्न चूड-मणिचूड नामके थे । एकदिन रत्नमाला महारोग से मर गयी। उस पर मोह वश राजा शोकार्त होकर, विलाप करने लगा । मणिप्रभ मुनि अवधिज्ञान से धनदेव के जीव को जानकर, प्रतिबोध देने के लिए आकाशमार्ग से आये । उसे पूर्वभव सुनाकर स्त्रियों का चरित्र सुनाकर प्रतिबोधितकर, दीक्षा दी । सर्व आगमों का अध्ययनकर, दोनों राजर्षि कर्ममल को खपाकर मोक्ष को प्राप्त हुए । इस प्रकार बुद्ध व्यक्ति मदन और धनदेव के समान विषयसुख को दुःख का कारण जानकर चारित्र ग्रहण करते हैं । वे मुक्ति सुख के भोक्ता बनते हैं
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इस प्रकार सुनकर सभी सभ्य विस्मित होकर ब्रह्मवैष्णव के
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