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________________ | पत्नी सहित आया देखकर उससे पूछा। उसने अपनी सारी कथा कही। रात को उस कन्या की आँखे गयीं । भिल्ल ने आँखे ठीक की । यह सब मैंने देखा। रात को हम सो गये। वे प्रातः वहाँ नहीं थे। कहाँ गये, यह मुझे मालूम नहीं । उसका विस्मयकारी चरित्र याद रह गया, इसलिए यहाँ यह चरित्र बताया।" राजा और कमला ने सोचा कही यह भिल्ल ही तो विप्ररूप में नहीं हैं ? इसकी चेष्टा गहन है। इसकी पत्नी विजयासुंदरी है या दूसरी? कलावानों का चरित्र कौन जान सकता है? जो भी हो, इतना तो खयाल आ गया, |संतोष हो गया कि विजयासुंदरी का पति भिल्ल नहीं है, राजकुमार है। वह सुखी है। और यहाँ मिलेगी यह यहाँ रहेगा तो सब जान लिया जायगा । इसे ही कमलसुंदरी देनी है। ऐसा निर्णय पुनः मनोमन कर लिया । राजा ने विप्र से कहा "तेरी कला अपूर्व है, कहीं न देखी, न सुनी। तुमने अपनी नाट्यकला से मेरे राज्य को उन्नति के शिखर पर ला दिया है। आपको मेरे पास ही रहना है। अन्यस्थान पर नहीं जाना है। उसने भी 'हाँ' कही। कमलसंदरी उस नाटक से रंजित होकर उसे ही पति रूप में चाहने लगी थी। एक दिन उसने धाव माता से कहा "माते ! प्रतिज्ञानुसार मेरे पिता वर्तन क्यों नहीं | कर रहे हैं?" धावमाता समझ गयी। उसने राजा से कहा । राजा |ने पुत्री की इच्छा देखकर उसी दिन ब्रह्मवैश्रवण को अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने में सहायता करने को कहा । तब उसने पूछा “किस प्रकार सहायता करूँ?'' राजा ने कहा "मेरी पुत्री से पाणिग्रहण करके।" उसने कहा "राजन् ! मेरे तो पहले भी धान्य रांधनेवाली ब्राह्मणी है। सामान्य व्यक्ति को एक से अधिक पत्नियों से दुःख होता है । क्योंकि मदन पत्नियों के कारण कितना दुःखी हुआ?" राजा के पूछने पर उसने मदन की कथा सुनायी।
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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