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पद्मपुर में पद्मरथने भिल्ल को कन्या दी थी । रानी, मंत्री आदि के द्वारा निर्भत्सना से पश्चातापकर प्रातः राजा ने भिल्ल एवं कन्या की शोध की । पर वे कहीं न मिले । अनेक ग्राम, नगरों में भी खोज करवायी, परंतु कन्या न मिली। राजा शोकातुर हो गया । थोड़े दिनों के बाद शोक मुक्त हुआ। पुरंदरपुर के नरसिंह राजा का पुत्र नरकुंजर, पद्मरथ राजा की सेवा के लिए आया । जयसुंदरी का उस पर स्नेह राग देखकर उसका विवाह महोत्सव किया। कमला रानी को अपनी पुत्री की खोज़ खबर न मिलने से, जयसुंदरी के विवाह महोत्सव को देखकर, उसे अधिक दुःख हुआ । वह राजा की अनुमति लेकर अपने पीयर कमलपुर में आ गयी । राजा उसको आती जानकर, सन्मुख जाकर, हर्षपूर्वक घर ले आया। भाई को मिलकर पुत्री का दुःख याद आया । राजा उस घटना से अनभिज्ञ होने से उसे दुःख का कारण पूछा। कमला ने विस्तारपूर्वक कमलसुंदरी का वृत्तांत कहा। सुनकर वह भी दुःखी हुआ। राजा आदि की निन्दा की। फिर धैर्य धारणकर कहा" बहन! खेद मतकर। कर्म के आगे किसी की शक्ति काम नहीं करती। फिर भी अवसर देखकर राजा को सजा दूंगा । भानजी को चारों ओर खोजूंगा । ब्रह्मवैश्रवण के द्वारा उसको प्रकट करूँगा।" उसने पूछा-"यह कौन है ?'' राजा ने संपूर्ण वृत्तांत कहा । कमला भाई के पुत्र की निरोगता के समाचार से आनंदित हुई। पुत्री का दुःख भी भूल गयी। भोगवती आदि रानियों ने ननन्द का स्वागत किया। विजयसूर भी आया। उसने नमस्कार किया। कमला ने स्नेहपूर्वक मस्तक पर हाथ फिराकर आशीर्वाद दिया । उसने ब्रह्मवैश्रवण की प्रशंसा की । कमला वहाँ कुछ दिन ठहरी । ब्रह्मवैश्रवण की पत्नी के साथ कमला का अति स्नेह हो गया। वह माता को माता रूप में जानती थी। परंत कमला उसे पहचान न सकी । पर खून के रिश्ते ने स्नेहिल कर दी । वह कमलसुंदरी को अधिक समय अपने पास रखने लगी ।