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मोहदत्त की कथा
जिसमें समस्त कुशल लोग निवास करते हैं, ऐसे गाँवों से शोभायमान कौशल नामक देश है। उसमें कोशला नामकी एक नगरी है। शत्रुओं की सेना उस नगरी का उल्लङ्गन नहीं कर सकती। नगरी के सब घर स्त्रियों के मुखचन्द्र की चन्द्रिका से खूब धुलकर स्वच्छ हो गये हैं। वहाँ के देवमन्दिरों की गङ्गा नदी में परछाई पड़ती है और वायु से हिलती हुई ध्वजाओं के छोर से मानो देवालय चन्द्रमा के कलङ्क को धो रहे हैं, ऐसी शोभा धारण करते हैं। वहाँ की भावना युक्त समस्त गुणों से सुन्दरी रामाएँ (स्त्रियाँ) एक मात्रा की अधिकता से रमाओं (लक्ष्मियों) का तिरस्कार करती हैं। वहाँ के महलों की सफेद ध्वजाएँ हवा से चलने वाली गङ्गा नदी मानो हजार मार्गों में चलने लगी है।
इस नगरी में क्षत्रियों में मुकुट समान, शुद्ध बुद्धि वाला, दान देने में कुशल और नीतिनिपुण कोशल नाम का राजा राज्य करता है। राजा की सेना के चलने से जो गर्द उड़ती है उससे सूर्य की किरणें भी टैंक जाती हैं। उसके पराक्रमगुण का वर्णन सर्पराज भी नहीं कर सकते। उसके घोड़ों से खूदी गयी जमीन से उड़ी हुई धूल के कारण सूर्य की कान्ति भी क्षीण दिखायी देती है। उसके हाथियों के झुंड के अत्यन्त मद झरने से मद की नदियाँ बहती हैं और उनके निःश्वास की तीव्र प्रतिध्वनि से हरेक रास्ते पर मेघ की सी गर्जना हुआ करती है। राजा के प्रयाण करते समय हाथियों वगैरह के निःश्वास के जो शब्द होते थे, वही शब्द शत्रु-राजाओं को भागने के लिए उत्साहित करते थे। राजा के यात्रा करते समय दुर्ग का उल्लङ्घन करते ही निःश्वास के जो शब्द होते थे उनसे
मोहदत्त की कथा
द्वितीय प्रस्ताव