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कुवलयमाला-कथा से मरालिका की तरह अभिनव जलद के दर्शन से मयूरी के तुल्य प्रमुदित हो गयी। तब उसने दोनों विद्याधरियों और कामगजेन्द्र को भी देखा। ____ तदनन्तर विमान से उतर कर वीर्यशाली कामगजेन्द्र शयनीय पर बैठ गया। वे दोनों विद्याधरियाँ बोली - "हे कल्याणी! जिन अपने पति को आपने हमको न्यास बना कर सौंपा था उनको अब लाकर आपके समर्पित कर दिया है" यह कह कर वे उड़कर चली गयीं। तब उसने चरणों में प्रणाम करके पूछा- "हे देव! आप कहाँ गये थे? और कहाँ से आये हो? आपने क्या देखा? क्या अनुभूत किया? किस अवस्था वाली वह विद्याधरी प्राप्त हुई? यह कृपा कर तत्काल कहिये।" कुमार कहने में प्रवृत्त हुआ- "यहाँ से विमान में आरूढ हुए मैंने आकाश में वैताढ्य पर्वत की गुफा के भीतर मणियों के प्रदीपों के प्रज्वलन से प्रकाशित दिशाओं वाला एक नूतन भुवन को और वहाँ नलिनी के पत्तों की चटाई पर विद्याधरकुमारी को देखा। तब उन दोनों विद्याधरियों ने मृणाल को कोमल वलयों वाली, चन्दन और कपूर की रेणु के समान धवल मृगनयनी इस कुमारी को जीती हुई देख कर प्रमुदित हुई कहा - 'हे प्रियसखी! प्रमुदित ये तुम्हारे मन से अभीष्ट दयित आ पहुँचे हैं, जो करना हो, वह कर लो' यह कहती हुई उन दोनों सखियों ने उसके अङ्गों से नलिनी के पत्ते हटा दिये। इस प्रकार ज्यों ही उन्होंने अच्छी तरह देखा त्यों ही उसके अङ्ग उपाङ्ग शिथिल होगये। पश्चात् हे दयिते! उन दोनों ने यह देख कर कहा कि 'यह हम दोनों की स्वामिनी मरेगी तब मैं भी।' 'यह क्या?' ऐसा विचार करता हुआ मैं ज्यों ही देखने में प्रवृत्त हुआ तो आँखें बन्द की हुई निश्चल अङ्गोपाङ्गों वाली वह पञ्चत्व को प्राप्त हो गयी। मैंने कहा-'हे देव! आपको यह करना उचित नहीं कि मेरे विरह के दुःसह अग्नि से सन्तप्त हुई आकाशगामी की पुत्री को मृत्यु को प्राप्त कर दिया।। ७९ ।।'
यह कहता हुआ मैं मोह को प्राप्त हो गया और क्षणभर में चेतना को प्राप्त हुए मैंने उन दोनों का विलाप सुना___'हे प्रिय सखी! क्या तू कुपित हो गयी जो प्रतिवचन नहीं देती है, क्या कारण है? यह अप्रिय क्या कर डाला कि इन दयित को बुलवाया।। ८०।।' ___मैंने कहा -"इसके लिये जो समयोचित हो वह करना चाहिये।" तब उन्होंने सूर्य के उदयाचलस्थ होने पर चन्दन का काठ लाकर बनायी हुई चिता
चतुर्थ प्रस्ताव