SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुवलयमाला-कथा [197] तब उसने उसकी याचना करके उस से पति का परिणय करा दिया। तब सन्तुष्ट हुए उसने कहा-"प्रिये! ठीक हुआ तुमने उस समय मेरे मनोभाव को देख लिया। तो कान्ते! कहो तुमको क्या वर दूँ?" उसने कहा ___ "जो कुछ आप देखते हो सुनते हो या अनुभूत करते हो हे प्रिय! वह सब मुझे भी बताना यही मुझे आप वर दीजिये । ७७।। उसने कहा 'एवमस्तु!' तब एक बार चित्रकार ने उस कुमार को एक चित्रपट समर्पित किया। उसमें चित्ताह्लादिका चित्रित एक कन्या को देख कर विस्मय से प्रसन्न मन वाले कुमार ने पूछा-'हे चित्रकार! तुमने वह कुमारी का रूप किसी प्रतिकृति का लिखा है अथवा अपनी बुद्धि से?' उसने निवेदन किया-"देव! उज्जयिनी महापुरी में "अवन्ती-नृपति की पुत्री का यह चित्र है।" तब कुमार सादर उसको नयनमनोहारिणी निद्रा के समान, हृदय को विदीर्ण करने में निपुण शक्ति के तुल्य, शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा के सदृश अति निर्मल, सुविभक्त वर्णों से शोभित महाराज के राज्य की स्थिति के सदृश, सुप्रतिष्ठित अङ्गोपाङ्ग से युक्त जिनश्रुति के तुल्य देख कर क्षणभर स्तम्भित बना हुआ, ध्यान में संलग्न सा, शिला से निर्मित सा, लेप्यमय सा स्थित रहा। तदनन्तर कृतकृत्य से कुमार ने उस चित्रपट की देवी को प्रदर्शित करके कहा -"देवि! सुन्दर हो, यदि यह कन्या उपलब्ध हो जाए।" उसने कहा-"देवि! अपना रूप चित्रपट में लिखवाकर इसी को लौटाकर भेज देना, जिससे अवन्तीपति उसे देख कर स्वयं ही दुहिता को दे दें।" कुमार ने कहा-"यह प्रमाण है।" तब उस चित्रकार ने कामगजेन्द्ररूप से समन्वित चित्रपट को अवन्तीपति के सामने दिखाया, उसने भी पुत्री को दिखाया। उसको देखकर उत्पन्न अनुराग वाली उसे जान कर राजा बोला-"यह उचित हुआ कि इस पुरुषद्वेषिणी ने उससे अन्य कुमार को नहीं चाहा। अब तो विविध प्रज्ञा के प्रकर्ष के पट्ट इस कुमार के रूप पर अति अनुरक्त हो गयी। अतः इसके लिए यही वर उपयुक्त है" ऐसा सोच कर राजा ने उस कुमार को कन्या दे दी। तब पिता की आज्ञा से कुमार वल्लभा के साथ स्कन्धवार से चल दिया। तदनन्तर सूर्यास्त हो जाने पर रात्रि के प्रथमार्ध में प्रिया के साथ कुमार ने शयन किया। इस प्रकार द्वितीय प्रहर में किसी की कोमल हथेली के स्पर्श से जगे चतुर्थ प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy