________________
सर्वात्मना सहयोग दिया है । चतुर्थ प्रस्ताव उन्हीं के द्वारा रूपान्तरित है। इसके लिये मैं उनको अपना अत्यन्त हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ ।
मैं अपनी दिवङ्गत पुण्यात्मा धर्मपत्नी श्रीमती सन्तोष जैन के प्रति भी अपनी भूयसी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ, जिसने मुझे गार्हस्थ्य - चिन्ता से मुक्त होकर इस दुष्कर साहित्य साधना व्रत के निर्वहण में सतत संलग्न रहने के लिए अविरत प्रोत्साहित किया है।
ज्येष्ठ पुत्र आयुष्मान् मञ्जुल, पुत्रवधू नीलम, कनिष्ठ पुत्र विशाल, पौत्री तितिक्षा और पौत्र वर्द्धमान के सौजन्य, स्नेह, समर्पण और सहयोग के लिए उनको भी ढेर सारे साधुवाद और अन्तरङ्ग आशीर्वाद ।
अन्त में प्राकृत भारती अकादमी के संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक साहित्यानुरागी, परम श्रद्धेय श्रीमान् देवेन्द्रराज जी मेहता के प्रति भी सदा सर्वथा सकार्त्तज्ञ्य नतमस्तक हूँ, जिनके महान् अनुग्रह से प्राकृत भाषा से संस्कृत में अनूदित 'कुवलयमाला - कथा' अब हिन्दी रूपान्तरण में प्रकाशित होकर साहित्यानुरागी पाठक - वृन्द के करकमलों में पहुँच रही है । परमपिता परमेश्वर इनको सारोग्य, समृद्धिमय और सुदीर्घायुष्य प्रदान करें ।
[ X ]
विनयावनत
म० विनयसागर मानद निदेशक, प्राकृत भारती अकादमी
कुवलयमाला-कथा