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कर राम-लक्ष्मण कुछ समय तक वहाँ रहे । 30%
• (घ) सुग्रीव द्वारा हनुमान की भेंट : राम एवं लक्ष्मण जब पाताल लंका में विराध के पास रह रहे थे तब किष्किंधा के वानरराजा सुग्रीव के दूत ने आकर इस प्रकार प्रार्थना की
महति व्यसने स्वामी पतितो नस्तदीदृशे। राघवौ शरणीकर्तु तब द्वारेण वांछति। 309
अर्थात् संकटग्रस्त हमारे स्वामी सुग्रीव राघव की शरण स्वीकार करना चाहते हैं। विराध ने दूत के कहा - "द्रुतमायातु सुग्रीवः। 310 दूत के पहुँचते ही सुग्रीव तुरंत रवाना होकर पाताल लंका पहुँचा व विराध से मिला। विराध ने राम से सुग्रीव की भेंट करवाई। ॥ सुग्रीव बोला- अस्मिन् दुःखे त्वमसि मे गतिः। 312 राम ने उसे उसका दु:ख दूर करने का आश्वासन दिया। विराध द्वारा सीताहरण का वृत्तांत सुग्रीव को समझाने पर सुग्रीव ने राम से कहा- मैं आपकी कृपा से शीघ्र ही सीता के समाचार लाऊँगा। " इस प्रकार परस्पर दुःख में एक दूसरे की सहायता करने के समझौते के पश्चात् विराध ने विदा ले राम-लक्ष्मणने सुग्रीव के साथ किष्किंधा की तरफ प्रस्थान किया। 314"
(च) माया सुग्रीव एवं बालि प्रकरण : सहसगति नामक विद्याधर सुग्रीव की पत्नी तारा की इच्छा रखता था। इस हेतु उसने प्रतारणी विद्या को सिद्ध कर मायावी सुग्रीव का रुप धारण किया व सुग्रीव के अंतपुर में प्रवेश किया। 315 असली सुग्रीव घर आकर जब महल में प्रवेश करने लगा तो उसे द्वार रक्षकों ने रोक दिया। द्वारपाल बोला- "अग्रेगतो राजा सुग्रीव।" असली सुग्रीव महलो में पहुँचा एवं उसने मायावी सुग्रीव को रोका। 316 अब प्रश्र खड़ा हुआ कि असली सुग्रीव कौन है। फैसला करने के लिए चौदह अक्षौहिणी सैनिक एकत्रित हुए। किसी को भी वास्तविक सुग्रीव की जानकारी न होने से सैनिक दो भागों में विभाजित हो गए। 317 मायावी एवं सत्य सुग्रीव के बीच भयंकर युद्ध हुआ। 318 अब सत्य सुग्रीव ने सहायतार्थ हनुमान को बुलाया। परंतु मायावी सुग्रीव ने उसे हनुमान की उपस्थिति में भी घायल कर दिया। 319 मन से हारा असली सुग्रीव किष्किंधा के बाहर निकल कर रहने लगा। नकली सुग्रीव वहीं रहा परंतु वह बालिपुत्र के भय से अंत:पुर में प्रवेश न कर सका। 320
तब सत्यसुग्रीव ने पाताल लंका जाकर राम से मित्रता की व राम को लेकर किष्किधा में आया। राम नगर के दरवाजे पर खड़े रहे एवं दोनों सुग्रीव युद्ध करने लगे। राम ने वज्रावर्त धनुष की टंकार की जिससे साहसगति की सिद्धि नष्ट हो गयी। और तब,
"एकेनाऽपीषुणा प्राणांस्तस्याऽहार्षीद्रधूद्वहः"। सुग्रीव पुनः किष्किंधा का राजा बना। सुग्रीव ने अपनी तेरह कन्याएँ
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