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शुभासंशा
डॉ. विष्णुदास वैष्णव का शोध-कार्य - "त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (जैन रामायण) और मानस का तुलनात्मक अध्ययन"आज जब संशोधित रुप में "हेमचंद्र एवं उनका त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित (जैन रामायण)" प्रकाशित हो रहा है तो मैं अपनी समस्त हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करता हुआ परम हर्ष का अनुभव कर रहा
डॉ. वैष्णव का यह शोध-विषय मौलिक एवं उपादेय है। सामग्री का विभाजन ऐतिहासिक ढंग से करके लेखक ने प्रतिपादन शैली को मौलिक एवं सरल बना दिया है। कृति की विशेषता उसकी व्यवस्था एवं अध्यायीकरण में भी परिलक्षित होती है। प्रस्तुत कृति के सात अध्यायों के संबंधीकरण से यह बात सिद्ध होती है।
प्रथम अध्याय में भारतीय रामकाव्य परंपरा में संस्कृत, प्राकृत व उपभ्रंश में उपलब्ध जैन रामकथाओं के वैविध्यपूर्ण पहलुओं का निरुपण किया गया है, उससे कृति की सम्यक् पृष्ठभूमि व प्रतिपादन की भूमिका प्रस्तुत हुई है।
दूसरे अध्यय में हेमचंद्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दृष्टिपात किया गया है। इसमें हेमचंद्राचार्य के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के निर्देश के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व के विविध पक्षों को भी रेखांकित किया गया है जिससे आगे के अध्यायों के अनुशीलन की सुयोग्य पीठिका निर्मित हो गई है।
तृतीय अध्याय दर्शन, भक्ति एवं अध्यात्म से संबंधित है। चतुर्थ अध्याय में वस्तु भावादि की गवेषणात्मक मीमांसा है। कृति का यह भाग बड़ा महत्वपूर्ण एवं शोध का सुमेरु है। प्रधान पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं का निरुपण एवं कथावस्तु के विविध महत्वपूर्ण अंगों के सूत्रों के तारतम्य को अक्षुण्य रखकर जो समीक्षा प्रस्तुत हुई है, वह सराहनीय है तथा नवीन उद्भावनाएँ भारतीय रामकथा साहित्य में. लेखक का मौलिक प्रदान है।
भाषा-शैली प्रौढ-प्रांजल एवं स्तरीय है। यह मौलिक, बोधवर्धक, उपेक्षित तथापि महत्वपूर्ण कृति जैन रामकथा परंपरा को समुचित रुप में समझने तथा भावात्मक एकता के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस शोध-कार्य से ज्ञान की सीमाओं का विकास तथा रामकाव्य के अध्यापन के कई नये परिप्रेश्य उद्घाटित होते हैं। पुनः हार्दिक शुभकामनाओं एवं बधाई के साथ
डॉ. हरीश शुक्ल निवृत्त आचार्य एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
आर्ट्स कॉलेज पाटण (उ.गुज.)