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(ड) राम के तिलक की तैयारियाँ और कैकेयी : कैकेयी को जब ज्ञात हुआ कि महाराज दशरथ प्रव्रज्या ग्रहण कर रहे हैं व भरत भी व्रत ग्रहण करने जा रहे हैं तो सोचने लगी कि मुझे पति एवं पुत्र दोनों से हाथ धोना पड़ेगा। उपाय के लिए कैकेयी ने अपना अमानती वरदान राजा से देन को कहा। 137 स्वीकृति मिलने पर वह बोल उठी- “विश्वम्भरामेतां भरताय प्रयच्छ तत्''- अगर आप संयम ग्रहण कर रहे हैं तो संपूर्ण पृथ्वी भरत को दीजिए। 138 दशरथ ने वरदान स्वीकार किया परंतु भरत ने राज्य ग्रहण नहीं किया। त्रिपष्टिशलाकापुरुषचरित के अनुसार कैकेयी ने केवल भरत हेतु राज्य माँगा, राम हेतु वनवास नहीं।
(च) कैकेयी की माँग और राम-लक्ष्मण-अपराजिता(कौशल्या) सुमित्रा : हेमचंद्र ने त्रिपटिशलाकापुरुपचरित में कैकेयी को दशरथ से केवल एक वरदान माँगते हुए बताया है और वह है "भरत के लिए राज्य।" कैकेयी की इस माँग पर राम-लक्ष्मण-अपराजिता एवं सुमित्रा पर होने वाली प्रतिक्रिया पर इस उपप्रसंग में विचार किया जा रहा है।
राम कैकेयी की माँग "भरत को राज्य" के लिए स्वाभाविक रूप से सहर्ष तैयार हो गए। वे कहते हैं - मेरे भाई भरत के लिए माता द्वारा राज्य की याचना करना उत्तम है। राम के अनुसार "मेरे में एवं भरत में कोई अंतर नहीं"। भरत का अभिषेक सानंद सोत्साह हो, यही राम की इच्छा रही। 139 राम को जब ज्ञात हुआ कि भरत राज्य ग्रहण नहीं कर रहा है तो वे भरत को समझाते हैं तथा निर्णय लेते हैं कि मेरे यहाँ रहते भरत राजा नहीं बनेगा अतः मैं वन को जाऊँगा। 14 निष्कर्षत: कैकेयी की माँग पर राम क्रोधित न होते हुए खुश होते हैं कि मेरा छोटा भाई राजा होगा। भरत राज्य ग्रहण करें इसलिए ही वे त्यागमय जीवन बिताकर वन जाने का निर्णय स्वेच्छा से लेते हैं।
क्रोधावतार लक्ष्मण कैकेयी की माँग पर जल-भुन गये। वे कहने लगे- "पिताजी सरल स्वभाव के हैं, यह (कैकेयी) वक्र स्वभाव की है। वरदान पहले से भी माँग सकती थी। अब कौनसा वरदान माँगने का समय था। 141 पुनः कुछ विचार कर सोचते हैं- ठीक ही हुआ, पिताजी को दुःख होगा अतः भरत भले ही राजा हो। वस्तुतः कैकयी की माँग पर लक्ष्मण क्षुब्ध हैं परंतु धैर्य धारण कर शांत हो जाते हैं। अपराजिता को जब वस्तुस्थिति की जानकारी मिली तब वे अचानक मूर्छित हो गई एवं पृथ्वी पर गिर पड़ी। 142 दासियों ने उन्हें सचेत किया तो बोल उठी-" यह मूर्छा ही मेरा सुख है। कैसे जाऊँगी। मेरी छाती वज्र की क्यों बनी है ? 143 अपराजिता कैकेयी की माँग से असहमत थी। क्योंकि भरत के राज्य न करने की आशंका से ही तो राम वन में जा रहे थे। अपगजिता के लिए दशरथ की दीक्षा व राम-वनवास दोनों ही दुःसह वियोग के कारण थे। फिर में धैर्य धारण कर अपराजिता ने राम को वनगमन की आज्ञा दं
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